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१४. ऋजु सूत्र नय
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२. ऋजु सून नय
सामान्य के लक्षण शंका-यहा वर्तमान काल का क्या स्वरूप है ?
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उत्तर-विवक्षित पर्याय के प्रारम्भकाल से लेकर उसका अन्त
होने तक जो काल है वह वर्तमानकाल है । (जैसे जन्म से लेकर मरण पर्यन्त का काल मनुष्य का वर्तमान काल है । और इसी इतने काल स्थायी मनुष्य एक स्वतत्रे पदार्थ है)।
अर्थ और व्यञ्जन पर्यायों की स्थिति के अनेक प्रकार होने से यह काल अनेक प्रकार का है । (अर्थ पर्याय का वर्तमान काल एक सूक्ष्म समय मात्र है, और स्थूल व्यञ्जन पर्याय का वर्तमान काल उन उन पर्यायो की हीनाधिक स्थिति प्रमाण है) उसमे पहिले (एक सूक्ष्म समय ग्राही) शुद्ध ऋजुसूत्र नय के विषय को दिखाते है-इस नय का विपय 'पच्यमानपक्व' है । पक्वका अर्थ
कथाञ्चित पकनेवाला और कथाञ्चित पका हुआ है। शंकाः--चूकि 'पच्यमान' यह पचन किया के चालू रहने अर्थात
वर्तमान काल को और 'पक्व' यह उसके पूर्ण होने अर्थात भूतकाल को सूचित करता है, अतः उन दोनो का एक मे रहना विरुद्ध है।
उत्तरः-नही, क्योंकि, पचन क्रिया के प्रारम्भ होने के प्रथम
समय मे पाकाश की सिद्धि न होने पर प्रथमक्षण के समान द्वितीयादि समयों में भी पाकाश की सिद्धि का अभाव होने से, पूर्णतया पाक की उत्पत्ति के अभाव का प्रसंग आवेगा । इसी प्रकार द्वितीयादि क्षणों में भी पाक की उत्पत्ति कहना चाहिये । इसलिये पच्यमान ओदन कुछ पके हुए अंश की अपेक्षा पक्व है, यह सिद्ध होता है, क्योंकि, ऐसा न मानने से समय के तीन प्रकार मानने