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________________ १४ ऋजु सूत्र नय ३६३ २. ऋतु सून नय सामान्य के लक्षण का प्रसंग आवेगा । वही पका हुआ ओदन कथंचित 'पच्यमान' ऐसा कहा जाता है, क्योंकि, विशद रूप से पूर्णतया पके हुए ओदन में (जो अभी सिद्ध नही हुआ है) पाचक का 'पक्व' से अभिप्राय है । उतने मात्र अर्थात् कुछ ओदनाश में पचन क्रिया के फल की उत्पत्ति के विराम होने की अपेक्षा वही ओदन उपरतपाक अर्थात् कथंचित पका हुआ कहा जाता है । इसी प्रकार क्रियमाण कृत, भुज्यमान-भुक्त, बध्यमान-बद्ध और सिद्धयत्-सिद्ध इत्यादि ऋजुसूत्र नय के विषय जानना चाहिये। तथा जब धान्यों को मापता है तभी इस नय की दृष्टि मे प्रस्थ (अनाज नापने का पात्र विशेष) हो सकता है, क्योंकि, जिसमे धान्यादि स्थित रहते है उसे निरक्ति के अनुसार प्रस्थ कहा जाता है । ६. रा. वा. ।१।३३।७।१७।१६ “यमेवाकाशदेशमवगाढु ससर्थ आत्म परिणामं वा तत्रेवास्य वसतिः ।" (क पा ।१।१८७।२२६।१) अर्थः-इस नय की दृष्टि से वह जितने आकाश देश को अवगाहन करने में समर्थ है, अर्थात् वह आकाश के जितने क्षेत्र को रोकता है, उतने में ही उसका वास है। अथवा जिन अपने आत्म परिणामो मे वह स्थित है उन्ही में उसका वास है। (नगर ग्रामादि में कहना युक्त नही।) ८. लक्षण नं० ८. (पूर्वा पर पयायों में सम्बन्ध का अभाव)१. ध।६।१७६।३ 'न शुल्क कृष्णीभवति, उभयोभिन्नकालाव स्थितत्वात् प्रत्युत्पन्नविषये निवृत्तपर्यायानाभिसम्बन्धात् । एवम् ऋजुसूत्रनयस्वरूपनिरूपणं कृतम् ।"
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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