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१४ ऋजु सूत्र नय
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का सम्बन्ध हो जाता है, अत: वह जल सकता है, सो यह भी ठीक नहीं है, क्योकि ऐसा मानने पर अग्नि का सम्बन्ध होने से वह उत्पन्न ही न हो सकेगा । इसलिये यदि उत्पत्ति के उत्तर क्षण में अग्नि का सम्बन्ध स्वीकार किया जाये तो यह भी सम्भव नही, क्योकि उत्पत्ति के द्वितीय क्षण मे पलालकी सत्ता नष्ट हो जाने से असत्ता के साथ अग्नि के सम्बन्ध का विरोध है । दूसरे जो पलाल है वह नही जलता है, क्योंकि उसमें अग्नि सम्बन्ध जति अतिशयान्तर का अभाव है । अथवा यदि अतिशयान्तर है भी तो वह पलाल को प्राप्त नही है, क्योंकि उसका स्वरूप पलाल से भिन्न है |
अर्थ
७.
क. पा. 19198१।२२८१३ " ततोऽस्य नयस्य न बन्ध्य बन्धक-बध्यघातक-दाह्यदाहक- संसारादय. सन्ति " |
२. ऋजु सूत्र नय सामान्य के लक्षण
-- इस नय से बन्ध्य बन्धक, बध्य घातक, दाह्य दाहक इस प्रकार के द्वैत भाव अभाव ससार मोक्ष आदि भाव सम्भव नही है ।
५ लक्षण नं० ५ (विशेषण विशेष्य द्वैत का अभाव )
?
यः
१. ध. 1६ १७४।१ "न कृष्णः काकोऽस्य नयस्य । कथम् कृष्ण : कृष्णात्मकमैव, न काकात्मकः, भ्रमरादीनामपि काकताप्रसंगात् काकश्च काकात्मको, न कृष्णात्मको शुल्क काकाभावप्रसंगात्, तत्पित्ता स्थिरुधिरादीनामपि कार्ष्णेय प्रसंगात् । ततोऽत्र न विशेषणविशेष्यभाव इति सिद्धम् ।"
( क. पा. 1१1१८८।२२६ । २ ) ( रा. वा. । १।३३।७/६७)
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