________________
१४ ऋजु सूत्र नय
२. ऋजु सूत्र नय
सामान्य के लक्षण अर्थ-कृष्णकाक इस नय का विशेष नही है । कारण कि जो
कृष्ण है वह कृष्णात्मक ही है, काक स्वरूप नही है, क्योकि ऐसा मानने पर भ्रमरादिकों के भी काक होने का प्रसंग आवेगा। इसी प्रकार काक भी काकात्मक ही है, कृष्णात्मक नहीं है, क्योंकि, ऐसा मानने पर सफेद काक के अभाव का प्रसंग आवेगा, तथा उसके पित्त (शरीरस्थ धातु विशेष हड्डी) व रुधिर आदि के भी कृष्णता का प्रसंग आवेगा। इसलिये इस नय की दृष्टि में विशेषण
विशेष्यभाव नही है, यह सिद्ध हुआ। २. क पा ।१। १९३ । २२६ ।६ 'नास्य विशेषणविशेष्य
भावोऽपि । तद्यथा-न स तावद्भिन्नयो. अव्यवस्थापन्ते । नाभिन्नयोः, एकस्मिस्ताद्विरोधात् । नाभिन्नयोरस्य नयस्य संयोग समवायो वास्ति, सर्वथैकत्वमापन्नयो परित्यक्त
स्वरूपयोस्तद्विरोधात् ।” अर्थ – इस नय की दृष्टि से विशेषण विशेष्य भाव भी नही
बनता है । उसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-भिन्न दो पदार्थो मे तो विशेषण विशेष्य भाव बन नही सकता है, क्योकि भिन्न दो पदार्थों मे विशेषणविशेष्य भाव के मानने पर अव्यवस्था की आपत्ति प्राप्त होती है । अर्थात जिन किन्ही भी दो पदार्थो मे (वह विवक्षित) विशेषण विशप्य भाव हो जायेगा उसी प्रकार अभिन्न दो पदार्थों मे भी विशेषणविशष्य भाव नही बन सकता है, क्योकि अभिन्न दो पदार्थों का अर्य एक पदार्थ ही होता है, और एक पदार्थ मे विशषण विशष्यभाव (रूप द्वैत) क मानने मे विरोध आता है।
तथा इस नय की दृष्टि मे सर्वथा अभिन्न दो पदार्थों मे सयोग सम्बन्ध अथवा समवाय सम्बन्ध भा