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(स्वतंत्र )
मानने मे
है, इसलिये पूर्वक्षण की सत्ता उत्तर क्षण की सत्ता की उत्पादक नही हो सकती है, क्योकि विरुद्ध दो सत्ताओं मे परस्पर उत्पाद्य उत्पादक भाव के विरोध आता है । अतएव ऋजुसूत्र नय की उत्पाद भी निर्हेतुक होता है, यह सिद्ध हो जाता है ( इसी बात को निम्न उदाहरण पर से पड़ने का प्रयत्न करे । )
दृष्टि से
१४ ऋजु सूत्र नय
२. ऋजु सूत्र नय सामान्य के लक्षण
६ ६ ६ ६ १७५८ " कि चन पलालो दह्यते, पलालाग्नि सम्बन्धसमनन्तरमेव पलालस्य नैरात्म्यानुपलम्भात् । न द्वितीयादि क्षणेषु पलालस्य नैरात्मयकृदग्निसम्वन्ध, तस्य तत्कार्यत्वप्रसगात् । " ( यद्यपि सस्कृत सक्षिप्त ही उद्धृत की है पर इसका भाषार्थ पूरा है | )
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{रा वा ।१।३३।७।६७।२६)
अर्थ - इस नय की दृष्टि मे पलालका दाह नही होता, क्योकि पलाल और अग्नि के सम्बन्ध के अनन्तर ही पलाल की निरात्मता अर्थात शून्यता नही पाई जाती । द्वितीयादि क्षणो मे पलालकी निरात्मता को करने वाला अग्नि का सम्बन्ध नही है, क्योकि उसके होने पर पलाल की निरात्मता को उसके कार्य होने का प्रसंग आवेगा । ( अर्थात जिस समय पलाल व अग्नि तो पलाल ही जलकर भस्म नही बनी भस्म है उस समय अग्नि नही रही है | )
का सयोग है तब
है, और जब
पलाल अवयवी का दाह नही होता, क्योकि अवयवी की ( इस दृष्टि मे ) सत्ता ही नही है । न अवयव जलते है, क्योकि स्वय निखयव होने से उनका भी असत्व है । यदि कहा जाय कि पलालकी उत्पत्तिक्षण में ही अग्नि