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१४. ऋजु सूत नय
२ ऋजु सूत्र नय
सामान्य के लक्षण ४ लक्षण न० ४:-एकत्व दृष्टि मे, कर्ता-कर्म, कारण-कार्य, तथा आधार आधेय आदि किसी प्रकार का भी सम्बन्ध नही देखा जा सकता क्योकि जहां एक प्रदेशी एक क्षणवर्ती व एक भावस्वरूप पदार्थ दृष्ट हो वहां किसे द्रव्य कहे, किसे गुण कहे व किसे पर्याय कहें, किसे क्षेत्र कहे, किसे काल कहे व किसे भाव कहे ? वह एक प्रदेश ही तो स्वयं द्रव्य है, अतः इस द्रव्य का यह क्षेत्र या प्रदेश है, ऐसा द्वैत कैसे किया जा सकता है ? क्योकि ऐसा भेद वहां ही सम्भव है जहा कि एक द्रव्य के अनेक प्रदेश हों । एक क्षण वर्ती वह वर्तमान रूप ही तो स्वय द्रव्य है, अत 'यह वर्तमान का रूप इस द्रव्य की पर्याय है' ऐसा भेद कैसे किया जा सकता है, क्योकि ऐसा भेद वहां ही सम्भव है जबकि उस द्रव्य मे उस वर्तमान रूप के अतिरिक्त उससे पहिले व पीछे वाले अन्य रूप भी देखे जाये । स्वलक्षण भूत जो एक भाव, उस स्वरूप ही तो वह द्रव्य स्वय है, अत 'यह गुण इस द्रव्य का है' ऐसा भेद कैसे किया जा सकता है, क्योंकि ऐसा भेद वहा ही सम्भव है जहां कि एक द्रव्य के आश्रित अनेको धर्म या भाव रहते हो।
द्रव्य क्षेत्र काल व भाव इन चारों अपेक्षाओ से जहा एकत्व दिखाई दे रहा है, वहा किसको कर्ता कहे और किसको कर्म, किसको कारण कहे और किसको कार्य, किसको आधार कहे और किसको आधेय ? पदार्थ स्वय' एक क्षण स्थिति प्रमाण है, अतः उसकी पर्याय किसको कहेगे । द्रव्य व पर्याय का भेद तो उस द्रव्याथिक दृष्टि मे ही देखा जा सकता है, जहां कि द्रव्य त्रिकाल स्थायी है और उसके परिवर्तनशील रूप या अवस्थाये क्षणस्थायी है। परन्तु पर्यायार्थिक दृष्टि मे जहा द्रव्य ही स्वयं वर्तमान रूप स्वरूप है और वर्तमान रूप ही द्रव्य स्वरूप है उस क्षण के पश्चात न द्रव्य की सत्ता है और न रूप की तो वताइये पर्याय की कल्पना किस में करे । पहिले भी कहा जा चुका है सामान्य मे विशेष रहता है पर विरोध मे अन्य