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________________ १४. ऋजू सूत्र नय ३४० अब ऋजुसूत्र नय के कुछ लक्षण करने में आते है, जिन पर से कि उपरोक्त कथन और भी अधिक स्पष्ट हो जायेगा । परन्तु उसे समझने के लिये २. ऋजु सूत्र नय सामान्य के लक्षण २ ऋजुसूत्र नय सामान्य के लक्षण दृष्टि को अत्यन्त सूक्ष्म करना होगा । चारों प्रकार से एकत्व दर्शाने के लिये यद्यपि इस नय के अनेको लक्षण किये जायेगे, पर वास्तव में वे सव ही ऊपर कथित एकत्व में गर्भित हो जायेगे । १ लक्षण न० १ - ऋजु का शब्दार्थ सरल या सीधा है । जो सरल या सीधे अर्थको ग्रहण करे वह ऋजुसूत्र नय है, यह इसकी व्युत्पत्ति है । सरल का अर्थ यहा एकत्व ही है । पदार्थ मे द्रव्य गुण पर्यायादि की अपेक्षा भेदाभेद करने से बुद्धि चक्कर में पड जाती है, अत द्रव्याथिक का विषय तो वत्र है । जो कोई भी एक है, बस वही वह है, अन्य के साथ उसका कोई नाता नही है, ऐसा जानना ही सरल व सीधा जानना है । अत इस लक्षण के द्वारा उसी एकत्व का ग्रहण होता है । २_लक्षण न० २ – वस्तु के द्रव्य क्षेत्र काल व भाव चारो अपेक्षाओ से अन्तिम विशेष की स्वतंत्र सत्ता को स्वीकारने वाले इस नय की दृष्टि मे विशेषो मे अनुगत सामान्य नाम की कोई वस्तु नही क्योकि उन अन्तिम एकत्वगत विशेषो मे अन्य विशेष नही रहते । ३_लक्षण न० ३:-- द्रव्य की व्यक्ति ही सत्ताभूत है । दो व्यक्तियों मे किसी भी अपेक्षा समानता नही बन सकती, अत जाति नाम की लोक मे कोई वस्तु नही । ढो पृथक पृथक पदार्थों का सयोग होना भी असम्भव है, और इसलिये अनेक परमाणुओं का एक स्कन्ध मानना दृष्टि का भ्रम है । तब जीव व शरीरादि के सयोग, स्वरूप संसारी जीव को मानना तो कहा अवकाश पा सकता है । द्रव्य आदि मध्य अन्त रहित निरवयव ही होता है, क्योकि अवयव मानने पर तो उसमें द्वैत उत्पन्न किया जा मकता है ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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