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________________ १४ ऋजु सूत्र नय ३३६ १ ऋजु सूत्र नय का सामान्य परिचय परमाणु केवल एक समय स्थायी है । एक समय के पश्चात उसका निरन्वय नाश हो जाता है, और दूसरा ही कोई परमाणु उत्पन्न होता है। इस प्रकार सत् का विनाश व असत् का उत्पाद होता है, अर्थात जो अव है वह नष्ट हो जाता है और जो नही है वह उत्पन्न हो जाता है । पहिले वाले से उस नवीन उत्पन्न होने वाले का कोई सम्बन्ध नही। रूप रस गन्ध आदि अनेक गुण परस्पर मे सयोग को प्राप्त नहीं हो सकते, अत. अनेक गुणो का कोई अखण्ड पिण्ड द्रव्य होता हो ऐसा नहीं है । वह परमाणु तो स्वलक्षणभूत किसी एक अवक्तव्य भाव स्वरूप ही है । इस प्रकार द्रव्य क्षेत्र काल व भाव चारो मे एकत्व दर्शाना इस नय का विषय है । इस नय की दृष्टि में जो बालक था वही वृद्ध नही हुआ है । बालक कोई और था जो विनिष्ट हो गया है और बृद्ध रूपेण कोई और ही उत्पन्न हुआ है । यही एकत्व का अर्थ है। ___ यद्यपि लौकिक दृष्टि मे यह बात वैठनी कुछ कठिन पड़ेगी, क्योकि उनकी दृष्टि व्यवहार नय प्रमुख' रहती है, परन्तु कभी कभी इस एकत्व दृष्टि का भी प्रयोग होता हुआ देखा जाता है । जैसा कि स्वर्ण की भस्म बन जाने पर उसे स्वर्ण कहता हुआ कोई नहीं देखा जाता, तब तो वह स्वर्ण से विलक्षण कोई अन्य स्वभाव का धारी पदार्थ ही दृष्टि मे आता है । सूक्ष्म दृष्टि करने पर उपरोक्त बात की सत्यता स्वत सिद्ध हो जायेगी। यह अभिप्राय ऋजुसूत्र के अनेको लक्षणो पर से और अधिक स्पष्ट हो जायेगा। पर्याय शब्द का अर्थ यद्यपि काल मुखेन ग्रहण करने की रूढि प्रसिद्ध है, परन्तु वास्तव मे पर्याय शब्द का अर्थ अश है, वह द्रव्यात्मक हो या क्षेत्रात्मक हो, या कालात्मक हो या भावात्मक हो । इन चारो प्रकार के अशों का नाम ही पर्याय शब्द का वाच्य है, अतः पर्यायाथिक ऋजुसूत्र नय इन चारो ही प्रकार के अशो या विशेषों की स्वतत्र सत्ता स्वीकार करता है।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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