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१४. ऋजु सूत्र नय
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उसके विशेष है । उस द्रव्य का अनन्त प्रदेशी अखण्ड देश सामान्य क्षेत्र है और असंख्यात संख्यात आदि एक प्रदेश पर्यन्त के भेद उसके विशेष है । उस द्रव्य की त्रिकाल स्थिति सामान्य काल है तथा असंख्यात व संख्यात वर्ष, मास, दिन आदि की स्थिति वाली स्थूल पर्यायों से एक समय प्रमाण स्थिति वाली पर्याय पर्यन्त के भेद उसके विशेष है । उस द्रव्य के ज्ञानादि गुण सामान्य भाव है, तथा उन गुणो के शक्ति अश या अविभाग प्रतिच्छेद उस के विशेष है ।
१. ऋजु सूत्र नय का सामान्य परिचय
इनमे से सामान्य को ग्रहण करने वाला नय द्रव्यार्थिक है और विशेष को ग्रहण करने वाला नय पर्यायाथिक है । द्रव्याथिक में भी दो विकल्प है शुद्ध व अशुद्ध या सग्रह व व्यवहार । इन दोनों नयों का युगल पूर्व कथित रूप मे उस सामान्य तत्व मे द्वैताद्वैत दर्शाता हुआ उसे उस अन्तिम विशेष पर्यन्त ले जाता है जिसमे कि आगे द्वैत किया जाना सम्भव न हो । जैसे कि द्रव्य का अन्तिम विशेष है जाति की कल्पना से रहित प्रत्येक व्यक्ति की पृथक सत्ता, क्षेत्र का अन्तिम विशेष है आदि मध्य अन्त रहित एक प्रदेश, काल का अन्तिम विशेष है एक सूक्ष्म समय प्रमाण स्थिति वाली सूक्ष्म पर्याय, और भाव का अन्तिम विशेष है गुण का एक अविभागी प्रतिच्छेद या शक्ति अश |
इन अन्तिम विशेषो मे किसी भी प्रकार द्वैत सम्भव नही होने के कारण इनकी अपनी अपनी पृथक पृथक सत्ता का सम्बन्ध किसी भी प्रकार से अन्य द्रव्य, क्षेत्र, काल या भाव से या उसके किसी भी विशेष से नही किया जा सकता । जहा द्वैत ही सम्भव नहीं वहा अद्वैत देखने का प्रश्न ही क्या ? इसलिये यद्यपि इस अन्तिम विशेष से पूर्व के सर्वं विशेषो को अद्वैत रूप से संग्रह नय ग्रहण कर लिया करता था, जिसमे कि व्यवहार नय आगे आगे द्वैत करता जाता था, परन्तु इस अन्तिम विशेष को अब वह संग्रह नय अपना विषय नही बना सकता और इसलिये न ही व्यवहार नय का कुछ व्यापार उसमे शेष रह जाता है !