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________________ १३. सग्रह व व्यवहार नय ३.११ २ सग्रह नय सामान्य होती इसलिये "द्रव्य ही तत्व है" इस प्रकार का निश्चय संग्रह नय है। यह तीनों नेगम, सग्रह व व्यवहार नये नित्य वादी हैं, क्योकि अपने विषयों को यह अभेद रूप से ग्रहण करते हैं । तीनों में ही अपने अपन विषय में पर्याय न होने के कारण सामान्य विशेष काल का अभाव है । ६ का. अ.।२७२ “यः सग्रहणाति सर्व देश वा विविध द्रव्यपर्याय । अनुगमलिंगविशिष्टं सोऽपिनय संग्रहः भवति ।२७२।" जो नय सब वस्तुओं को तथा देश अर्थात एक वस्तु के भदो को अनेक प्रकार द्रव्य पर्याय सहित अन्वय लिग से विशिष्ट सग्रह करता है--एक स्वरूप कहता है, वह सग्रह नेय है । - ७ रा वा ।४।४२।१७।२६१।४ -"तत्र सग्रहः मत्त्वविषयः, सकल वस्तुतत्व सत्वे अन्तर्भाव्य संग्रहात् ।" . (अर्थ:--सग्रह नय वस्तु के. सत्व को विषय -करता है, क्योकि सकल वस्तु तत्वतः सत्व मे गभित हो जाती है ।। स० सि० १।३३।५०६ "द्रवति गच्छति तान्स्तान्पर्यायानित्युपलक्षिताना जीवाजीवतन्देदप्रभेदानां सग्रहः।" (अर्थ-"उन उन पर्यायो को जो प्राप्त होता है सो द्रव्य है' ऐसे लक्षण वाले जीव या अजीव पदार्थ तथा उन सबके 'भेद प्रभेदों को अभेद करके ग्रहण करन वाला सग्रह -- नय है।) - .. ... . २. लक्षण न० २ (व्यक्ति भेद न करके जाति को 'एक कहना) -
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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