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१३. सग्रह व व्यवहार नय
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२ सग्रह नय सामान्य
अर्थ- (अभेद रूप से जो वस्तु की जाति मात्र को समूह रूप
से सग्रह करके ग्रहण करे वह संग्रह नय है।) ३. ध०। ६। १७०। ५"तत्र सत्तादिना य सर्वस्यपर्यायकलकाभावेन
अद्वैतत्वमध्यवस्येति शुद्ध द्रव्याथिकः स सग्रहः"
(अर्थ-व्यवहार नय के द्वारा किये गये द्रव्य के भेद प्रभेदों की
अपेक्षा न करके, सत्ता आदि रूप से किये गये, सर्व भेदों के कारण से लगने वाले, पर्याय रूप कलक का निरास करते हुए, उसके अद्वैत पने को जो दर्शाता है ऐसा शुद्ध द्रव्याथिक नय ही सग्रह नय है ।) . .
४ ध०।१३।१६६। २ व्यवहारमनपेक्ष्य सत्तादिरुपेण सकलवस्तु
सग्रहाकः सग्रह नय है।"
अर्थ--व्यवहार नय की अपेक्षा न करके सत्तादिरूप से सकल
वस्तु को सग्रह करने वाला अर्थात उस में अद्वैत दर्शाने वाला सग्रह नय है।)"
५०० ।१।८४१२ विधिव्यतिरिक्तप्रतिषेधानुपलम्भात विधिमात्रमेव
तत्वमित्यव्यवसायः समस्तस्य ग्रहणात्सग्रहः । द्रव्यव्यतिरिक्त पर्यायानुपलाम्भाद् द्रव्यमेव तत्वमित्यवसायो वा सग्रहः । एते त्रयोऽपि नया. नित्यवादिन. स्वविषये पर्यायाभावतः सामान्य विशेपकालयोरभावात् ।”
(अर्थ-विधि रहित प्रतिषेध कोई वस्तु नही इसलिये "विधि
अर्थात सत् मात्र ही तत्व है" इस प्रकार वस्तु के अखडत्व का निश्चय करने के कारण इस नय को सग्रह नय कहत है । अथवा द्रव्य से रहित कोई पर्याय उपलब्ध नहीं