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१३ सग्रह व व्यवहार नय
२. संग्रह नय
सामान्य
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२. संग्रह नय सामान्य
उपरोक्त सर्व वक्तव्य व उदाहरणों पर से संग्रह tय का लक्षण निकाला जा सकता है ।
जाति या व्यक्ति रूप से दिखने वाले द्रव्यात्मक द्वैत का, अथवा गुण पर्याय आदि रूप से दीखने वाले भावात्मक द्वैत का, तथा इसी प्रकार क्षेत्र व काल की सीमा का निरास करके, द्रव्य क्षेत्र काल व भाव चारों की अपेक्षा ही, किसी तत्व को अद्वैत देखना संग्रह नय का लक्षण है । इस दृष्टि में महा सत्ता या अवान्तर सत्ता, जिस किसी को भी देखा जाये वह द्रव्य की अपेक्षा एक काल की अपेक्षा नित्य और भाव की अपेक्षा स्वलक्षणभूत एक्यरूप अखण्ड रस मात्र दिखाई देता है । अपनी जाति के अनेक द्रव्यों में एकता की स्थापना करना संग्रह नय का काम है, जैसे 'गाय एक पशु है' ऐसा कहना भले ही व्यक्ति की अपेक्षा वे अनेक हों । संग्रह नय वास्तव मे जाति को देखता है व्यक्ति को नही ||
चन
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अब इन लक्षणों की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ आगम कथित उद्धरण देखिये :
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१. लक्षण नं.० १:- (शुद्ध द्रव्यार्थिक का विषय भूत अद्वैत सत्)
पर्यायकलक
१ क. पा० । १ । १८२।२१६।१ " शुद्ध द्रव्यार्थिक रहित बहुभेदः संग्रहः । "
( अर्थ - - द्रव्य के अन्दर दीखने वाले गुण व पर्यायों के अनेकों भेदो या अंशो का संग्रह करके, पर्याय कलक रहित एक अखण्ड व अद्वैत द्रव्य की सत्ता को दर्शाने वाला शुद्ध द्रव्याथिक नय है | )
२.आ१ पा० ।१ε।पृ०१२४ " अभेदरूपतया वस्तुजात सग्रणातीति संग्रह ।"