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१२. नैगम नय
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७. नेगम नय के भेदो
का समन्वय उत्तर -"नैगमनय सग्रहनय और व्यवहारनय के विषय मे एक
साथ प्रवृत्ति करता है, अतः वह सग्रह व व्यवहार नय मे अन्तर्भूत नही होता है ; क्योकि उसका विषय इन दोनो के विषय से भिन्न है।"
(अर्थात उभय रूप से दोनों नयों के भेद प्रभेदो मे एकत्व की स्थापना करना इस नय का स्वतत्र विषय है ।
शंका-'यदि ऐसा है तो दो प्रकार का (सग्राहिक व असग्राहिक)
नैगम नय नही बन सकता,?' उत्तर -"नही, क्योकि, एक जीव मे विद्यमान अभिप्राय आलम्बन
के भेद से दो प्रकार का हो जाता है । और अभिप्राय के भेद से उसका आधारभूत जीव दो प्रकार का हो जाता है इसमे कोई विरोध नही है। इसी प्रकार
नैगमनय भी आलम्बन के भेद से दो प्रकार का है।" (इसका तात्पर्य यह है कि जिस समय कोई वक्ता अभेद द्रव्य का आलम्बन करके द्रव्य का सामान्य परिचय देना चाहता है, तो नैगम नय अभेद ग्राही या सग्राहिक हो जाता है । उसी को द्रव्य नैगम कहते है। और जब उसकी पर्याय को आलम्बन करके उसी द्रव्य का विशेष परिचय देना चाहता है तो नैगम नय भेदग्राही या असमाहिक बन जाता है । उसी को पर्याय नैगम कहते है। परन्तु दोनो बार परिचय उस अखण्ड द्रव्य का ही देने के कारण इसका विषय सग्रह व व्यवहार से पृथक ही रहता है ।
६ शंका -नैगमनय को द्रव्याथिक कैसे कहते हो ?
उत्तर-इस प्रश्न का उत्तर (ध. । ११८४१७) धवला मे निम्न प्रकार दिया है।