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१२. नैगम नय
७. नैगम नय के भेदो
का समन्वय
"एते त्रयोऽपि नया नित्यवादिनः, स्वविषये पर्यायाभावत: सामान्यविशेषकालयोरभावात् ।”
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अर्थ:-- ये तीनों ही ( नैगम, संग्रह व व्यवहार ) नये नित्यवादी है, क्योंकि इन तीनों ही नयों के विषय मे सामान्य और विशेष काल का अभाव है । ( नित्यवादी होने के कारण ही यह द्रव्याथिक है | )
१० शंका नैगमनय यदि द्रव्यार्थिक है तो उसके भेदो मे पर्याय नैगम का ग्रहण करके पर्याय को इसका विषय कैसे बनाया सकता है ?
उत्तर - यद्यपि पर्याय नैगम में ऊपर से देखने पर तो ऐसा ही प्रतीति मे आता है कि नैगमनय ने वहा पर्याय को अपना विषय बना लिया है, परन्तु सूक्ष्म दृष्टि से विचार करने पर ऐसा नही है । क्योकि पर्यायार्थिकनय उसे कहते है, जिसमे कि केवल एक पर्याय को ही एकत्व रूप से, द्रव्य की अन्य सर्व पर्यायो से पृथक निकाल कर, एक स्वतंत्र सत् के रूप मे विचारा जाये । उस विचारणा मे उस समय उससे अतिरिक्त अन्य पर्याय की या अनुस्यूत द्रव्य सामान्य की सत्ता रूप कोई वस्तु प्रतीति मे नही आती । परन्तुयहां नैगमनय में ऐसा प्रतीति होने नही पाता । यहा तो सर्वत्र द्वैत का ग्रहण किया गया है। यह नय द्रव्य के स्वभाव के आधार पर से द्रव्य का, और पर्याय के स्वभाव पर से पर्याय का, तथा इसी प्रकार द्रव्य पर से पर्याय का और पर्याय पर से द्रव्य का विचार करता है ।
पृथक अकेली पर्याय का विचार करना यहा अभिप्रेत नही है । इस द्वैत भाव के ग्रहण के कारण पर्याय को विषय करने पर भी