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१२. नैगम नय
अर्थ - शकाकार कहता है कि भाविसंज्ञा में तो यह आशा है कि आगे उपकार आदि हो सकते हैं, पर नैगम नय मे तो केवल कल्पना ही कल्पना है, अत: यह सभ्यवहार के अनुप - युक्त है । इसके उत्तर मे ग्रथकार कहते है कि नयो के विषय के प्रकरण में यह आवश्यक नही है कि उपकार या उपयोगिता का विचार किया जाये । यहा तो केवल उनका विषय बताना है । अथवा सकल्प के अनुसार निष्पन्न वस्तु से आगे उपकारादि की सभावना भी है ही ।
७. नैगम नय के भेदो
का समन्वम
८. शंका -- (का. पा. । १ । ३५४ । ३७६ । १०) में से उद्धत
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"यह नंगम नय सग्राहिक और अस्ग्राहिक के भेद से यदि दो प्रकार का है, तो नैगम नय, कोई स्वतन्त्र नय नही रहता है, क्योकि उसका कोई विषय नही पाया जाता | ( अर्थात यदि संग्रह और व्यवहार इन दोनो ही नयो का विषय इसका विषय है, तो इसका अपना कोई स्वतंत्र विषय नही रहता । यहा तीन विकल्प हो सकते है | )
(i) नैगम नय का विषय संग्रह है ऐसा नही कहा जा सकता, क्योकि उसको सग्रह्नय ग्रहण कर लेता है ।
(ii) नैगम नय का विषय विशेष भी नही हो सकता है, क्योकि उसे व्यवहारनय ग्रहण कर लेता है ।
(iii) और सग्रह और विशेष के अतिरिक्त कोई विषय भी पाया नही जाता है, जिसको विषय करने के कारण. नैगम नय का अस्तित्व सिद्ध होवे ?"