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________________ २६७ १२. नैगम नय अर्थ - शकाकार कहता है कि भाविसंज्ञा में तो यह आशा है कि आगे उपकार आदि हो सकते हैं, पर नैगम नय मे तो केवल कल्पना ही कल्पना है, अत: यह सभ्यवहार के अनुप - युक्त है । इसके उत्तर मे ग्रथकार कहते है कि नयो के विषय के प्रकरण में यह आवश्यक नही है कि उपकार या उपयोगिता का विचार किया जाये । यहा तो केवल उनका विषय बताना है । अथवा सकल्प के अनुसार निष्पन्न वस्तु से आगे उपकारादि की सभावना भी है ही । ७. नैगम नय के भेदो का समन्वम ८. शंका -- (का. पा. । १ । ३५४ । ३७६ । १०) में से उद्धत ――― "यह नंगम नय सग्राहिक और अस्ग्राहिक के भेद से यदि दो प्रकार का है, तो नैगम नय, कोई स्वतन्त्र नय नही रहता है, क्योकि उसका कोई विषय नही पाया जाता | ( अर्थात यदि संग्रह और व्यवहार इन दोनो ही नयो का विषय इसका विषय है, तो इसका अपना कोई स्वतंत्र विषय नही रहता । यहा तीन विकल्प हो सकते है | ) (i) नैगम नय का विषय संग्रह है ऐसा नही कहा जा सकता, क्योकि उसको सग्रह्नय ग्रहण कर लेता है । (ii) नैगम नय का विषय विशेष भी नही हो सकता है, क्योकि उसे व्यवहारनय ग्रहण कर लेता है । (iii) और सग्रह और विशेष के अतिरिक्त कोई विषय भी पाया नही जाता है, जिसको विषय करने के कारण. नैगम नय का अस्तित्व सिद्ध होवे ?"
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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