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________________ - १२. नेगम नय २६६ ७. नैगम नय के भेदों का समन्वय उन उन पदार्थो मे भावि संज्ञा का व्यवहार मात्र है। इसके उत्तर मे ग्रन्थकार कहते है, कि ऐसा नहीं है, क्योकि सज्ञाकरण का व्यवहार तो केवल वस्तु भूत पदार्थ में ही होना सम्भव है, जैसे कि राजकुमार को या तदुल को योग्यता के आधार पर राजा व भात कह देना । परन्तु नैगमनय में तो इस प्रकार का कोई वस्तुभूत पदार्थ ही सामने नही है, जिसको आश्रय करके कि इस प्रकार का व्यवहार सम्भव हो सके । इस नय का व्यापार तो मात्र कल्पना करना है। ७. शंका - केवल कल्पना तो कोई पदार्थ नही, फिर इस नैगम नय का स्वीकार किस प्रकार उपयुक्त है ? उत्तर.- नयो के विषय में यह आवश्यक नहीं कि व्यवहारगत उपयोगिता का ही विचार किया जाये, यहा तो ज्ञान की व्यापकता मे जो जो भी प्रतीति होनि सम्भव है, वह सब ही किसी न किसी नय का विषय है, ऐसा बताना अभीष्ट है। राजवातिक कार इस शका. का समाधान निम्न प्रकार करते है - रा. वा ।१।३३।४।९५ "स्यादेतत् नैगम नय वक्तव्ये उपकारो नोपलभ्यते, भावि संज्ञा विषये तु राजादावुपलभ्यते, ततो नाय युक्त इति; तन्नकि कारणम् । अप्रतिज्ञानात् नैतदस्माभि, प्रतिज्ञातम् 'उपकारे सति भवितव्यम्' इति । कि तहि ? अस्य नयस्य विषय. प्रदर्शयते । अपि च, उपकार प्रत्यभिमुखत्वादुपकारवानेव ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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