________________
१२. नैगम नय
२७०
४. द्रव्य नैगम नय
मार्तीय जाति की। इनमे मार्तीय जाति अनेक भेद वाली हैं । तहा पुन एक एक पृथक पृथक भेद भूरी काली व सफेद आदि रंगो की अपेक्षा अनेक प्रकार का है। इसी प्रकार जीव एक पदार्थ है। वही दो प्रकार का है संसारी व मुक्त । उनमे भी संसारी त्रस स्थावर आदि के भेदों से अनेक प्रकार का है, इत्यादि ।
इस प्रकार भेद प्रभेद डालना द्रव्याथिक नैगम नय का विषय है। यहा भी एक द्रव्य को अथवा उसके एक भेद को उसी के उत्तर भेदो के आधार पर विशेष रूप से समझाना अभीष्ट है। द्रव्य स्वयं तो द्रव्याथिक का विषय है ही, पर वह उसके भेद भी द्रव्याथिक के ही विषय है, क्योंकि यथा योग्य रूप से सर्व ही भेद द्रव्य पर्याय स्वरूप है । इनमे कोई भी भेद अर्थ पर्याय वाला नहीं है, जो कि उन को पर्यायाथिक का विषय बताया जा सकता । यद्यपि ये सर्व भेद तो पर्याय है द्रव्य नही, पर द्रव्य पर्याय होने के कारण इन्हे द्रव्याथिक के विषय रूप ही स्वीकार किया जाता है । इस प्रकार उपरोक्त उदाहरण को द्रव्य नैगम नय का विषय बनाना निर्वाध सिद्ध है । ये सब ही इस व्यापक नय के लक्षण व उदाहरण समझना । अब इन की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ आगमोक्त वाक्य सुनिये ।
१. क पा ।पू ११ पु २४४ "सर्वमेकं सदविशेषोत्, सर्व द्विविध जीवा
जीवभेदादित्यादि युतयवष्टम्भबलेन विषयीकृत संग्रह व्यवहारनय विषय. द्रव्याथिक नैगम ।"
अर्थः-अभेद दृष्टि से देखने पर सकल विश्व व्यापी सत् एक
है । वह ही जीव व अजीव के भेद से दो प्रकार का है। इसी प्रकार से युक्ति पूर्वक संग्रह व व्यवहार इन दोनों नयो के विषय को स्वीकार करने वाला द्रव्याथिक नैगम नय है।