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१२. नैगम नय
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४. द्रव्य नैगम नय
२. ध. । पु. ६:पृ. १८११३. "न एगमो नैगमः इति न्यायात--
शुद्धाशुद्ध द्रव्याथिक नय द्वय विषयः द्रव्याथिक नैगम ।" अर्थः-- जो एक को विषय न करे अर्थात भेद व अभेद दोनों
को विषय करे वह नैगम नय है' इस न्याय से जो शुद्ध द्रव्याथिक और अशुद्ध द्रव्याथिक दोनो नयों के विषय को ग्रहण करने वाला है वह द्रव्याथिक नैगम नय है।
३. रा. वा. हि. १६३३।१६८ (यद्यपि यहा द्रव्य नैगम सामान्य
का लक्षण नहीं दिया है, उसके भेदो के लक्षण अवश्य दिये है जो आगे आने वाले है । वहा सर्वत्र द्रव्य जो लक्ष्य या विशेष्य उनको मुख्य किया है और 'सत्' अथवा 'गुणपर्यायवान' जो लक्षण या विशेषण इनको गौण किया है। तातै 'द्रव्य विषै विशेष्य को मुख्य और विशेषण को गौण करके द्रव्य का संकल्प करना द्रव्य नैगम है' ऐसा इसका लक्षण किया जा सकता है ।)
इस प्रकार लक्षण, उदाहरण व उद्धरण इन तीनो का कथन हो चुकने के पश्चात अब इसके कारण व प्रयोजन विचारिये । द्रव्य पर से द्रव्य का सकल्प करने के कारण द्रव्य नय है । अद्वैत मे लक्षण लक्ष्य रूप द्वैत को ग्रहण करने के कारण नैगम है। वस्तु की तरफ न देखकर मात्र ज्ञान के आकार मे ही संकल्प द्वारा इस प्रकार का द्वैत किया गया है । इसलिये भी यह नैगम नय है । इसलिये इसका 'द्रव्य नैगम नय' ऐसा नामा सार्थक है । यह इस नय का कारण है । तथा दृष्ट कार्यो या स्वभावों के आधार पर अष्दृट व अखण्ड वस्तु का परिचय देना इसका प्रयोजन है। ,
यहां इतना अवधारण करना योग्य है कि आगे आने वाले शुद्ध व अशुद्ध द्रव्य नेगम नयो के प्रकरण मे 'शुद्ध' शब्द का अर्थ सर्वत्र