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१२. नैगम नय
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३. भूत वर्तमान व
भावि नैगम नय इस प्रकार दोनो मे दूर भविष्य व निकट भविष्य का ही अन्तर है।
सिद्धान्तिक रुप से विचारने पर तो दूर भविष्य या निकट भविष्य दोनो भविष्य ही है । एक क्षण पीछे वाला समय भी वास्तव मे भविष्य ही है और इसलिये इसे भी वर्तमान नैगम न कह कर भावि , नैगम ही कहना चाहिये, परन्तु स्थूल व्यवहार मे निकट भविष्य वर्तमान रूप से ही ग्रहण करने मे आता है । जैसे “जो कल करना सो आज कर और जो आज करना सो अब कर" इस वाक्य मे 'कल' की अपेक्षा 'आज का सारा दिन' वर्तमान रुप से ग्रहण किया है और 'आज' की अपेक्षा 'अब' अधिक वर्तमान रुप से । 'अब' की अपेक्षा 'आज' का शेष समय भविष्यत में पड़ा है और 'आज' की अपेक्षा 'कल' का सारा समय भविष्य मे पड़ा है । इसी प्रकार जू जू निकटता आती जाती है तू तू उस भविष्यत काल मे वर्तमान पने का सकल्प होता चला जाता है।
___ इसलिये निकट भविष्य में निष्पन्न होने के निश्चय वाले कार्य के सकल्प को वर्तमान नैगम नय कहते है, और दूर भविष्य मे निष्पन्न होने वाले कार्य के संकल्प को भावि नैगम कहते है। यही दोनो मे अन्तर है । सूक्ष्म दृष्टि से विचारने पर तो वर्तमान नैगम भी भावि नैगम ही है।
अध्यात्म दिशा मे भी उदाहरणार्थ उपरोक्त प्रकार ही आप किसी ऐसे प्रगति शील साधक को देख कर जो बराबर अधिकाधिक उत्साह के साथ आगे बढ़ता जा रहा है अर्थात गृहस्थ से श्रावक होता है, वहा भी कुछ कुछ महीनों या वर्ष पश्चात् ऊपर ऊपर की प्रतिमाये धारण करते हुए मुनि बन जाता है, या मुनि बनने की अतीव जिज्ञासा रखते हुअ मुनि बनने के उन्मुख हो जाता है । बराबर अपनी