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१२. नैगम नय
२६० ३. भूत वर्तमान व
___भावि नैगम नय (अर्थ-अभव्य जीव मे तो अन्तरात्मा परमात्मा पना केवल
शक्ति रूप से ही स्वीकार किया जा सकता है पर व्यक्ति रुप से तो भावि नैगम नय से भी कदापि स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि वहा उस की व्यक्ति का असम्भव पना
इस प्रकार इस नय के लक्षण, उदाहरण व उद्धरण तो कह दिये गये । इस नय को उत्तर प्रज्ञापन नय तथा भावि सज्ञा व्यवहार भी कदाचित कहने मे आता है। अब इस के कारण व प्रयोजन सुनिये ।
ज्ञान की वर्तमान कल्पना में किसी पदार्थ के भविष्य का साक्षात निश्चय होना इस नय का कारण है। और व्यक्ति या साधक को उसके पुरुषार्थ के लिये शाबाश दे कर उसे उत्साह प्रदान करना इस नय का प्रयोजन है।
(३) वर्तमान नैगम नय
भावि नैगम वत् वर्तमान नैगम मे भी अनिष्पन्न या अपूर्ण कार्य को निष्पन्न या पूर्ण वत् स्वीकार किया जाता है । अन्तर केवल इतना है कि वहा तो कार्य की निष्पत्ति कुछ दूर है और यहा अत्यन्त निकट । वहां तो कार्य की निष्पत्ति में अनेको बाधाये आनी सम्भव है और यहा ऐसी कोई बाधा का आना ख्याल में नहीं आता। वहा तो कार्य की निष्पत्ति मे उपरोक्त कारणो से कुछ सन्देह पड़ा रहता है और यहा निश्चय दृढ़ होता है । यद्यपि वर्तमान काल सम्बन्धी भी अर्थ निष्पन्न कार्य की निष्पत्ति, सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर तो भविष्यत मे ही पड़ी है पर फिर भी यह भावि काल बहुत छोटा होने के कारण स्थूल दृष्टि से वर्तमान सज्ञा को प्राप्त हो जाता है। इसीलिये इसे