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१२. नैगम नय
३ भूत र्वतमान व
__ भावि नैगम नय साधना करता रहा तो भगवान हो जाने का निश्चय है" ऐसा दर्शाना अभीष्ट है। साधना की महिमा बताकर उसे उत्साह प्रदान करने का प्रयोजन है, और विचारणा में रहनेवाला उपरोक्त निश्चय इसका कारण है । ऐसे इस नय के उदाहरण हुए।
अनिष्पन्न या अन हुए व अनिश्चित का वर्तमान मे निश्चित रूप से निष्पन्न मानने का सकल्प करना भावि नैगम नय का लक्षण है । अव इस लक्षण की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ आगम कथित उद्धरण सुनिये ।
१.व. न. च. १२०७ “निष्पन्नमिव प्रजल्पति भाविपदार्थ नरोऽ___ निष्पन्नम् । अप्रस्थे यथा प्रस्थो भण्यते स भावि नैगम
इति नयः ।२०८।"
(अर्थ - अनिष्पन्न भावि पदार्थ को निष्पन्न वत कल्पना
करना भावि नैगम नय है। जैसे कि कुल्हाड़ी लेकर जाते हुए किसी मनुष्य से पूछने पर वह कह देता है, कि प्रस्थ लेने जाता हूँ । यहा परस्थ पर्याय अभी बनी नही, फिर भी केवल सकल्प के आधार पर उसे बनी हुई वत ही स्वीकार कर लिया गया है।
२. मय चक्र गद्य पृ. १२. “चित्तस्थ पदनिर्वृत्त प्रस्थके प्रस्थकयथा।
भाविनो भूतवब्दूत नैगमोऽनागतो मतः ।३।"
"भाविकाले परिणामिष्यतोऽनिष्पन्न क्रिया विशेषान् वर्तमान काले निष्पन्ना इतिकथंन भावि नेगमः।"
अर्थ - जैसे निष्पन्न होने वाले अनिष्पन्न प्रस्थक को निष्पन्न
कह दिया जाता है, उसी प्रकार ध्यानस्थ मुनि को मुक्त