________________
१२. नैगम नय
२५४
३ भूत र्वतमा नव
भावि नैगम नय वहा विनष्ट पर्याय को वर्तमान के साथ जोडने का सकल्प किया गया था और यहा अनुत्पन्न पर्याय को । यह तो इस नय का लक्षण हुआ अव उदाहरण सुनिये ।
___किसी एक ऐसे बालक को देखकर जो कि स्कूल में बहुत होशियार है और सदा परीक्षा में अव्वल आता है तथा जो कई बार दो दो कक्षा की परीक्षाये एक साथ दे चुका है और बडी बुद्धिमानी की वाते करता है, आप सहसा ही यह कह वैठते हैं कि "भाई ! यह तो कोई बड़ा आदमी है। यद्यपि है नहीं पर भविष्यत मे बनने की सम्भावना है, फिर भी 'हे' या "हो चुका है" ऐसा कह दिया जाता है । प्रयोजन है उसको शावाश दे कर उसका उत्साह बढ़ाने का, और कारण है उसकी वर्तमान योग्यता को देखकर उस का भविष्य' ज्ञान मे आ जाना। यद्यपि यहाँ यह निश्चय नहीं है कि वह बड़ा आदमी ही बनेगा या कि भीख मांगेगा, परन्तु यदि इसी प्रकार वृद्धि करता रहा तो इसका भविष्य उज्जवल होना निश्चित ही है, इसी सकल्प के कारण ऐसा कह दिया गया है।
इसी प्रकार अध्यात्म मार्ग मे किसी नव जात साधक को “तू तो भगवान ही है या अपने को भगवान हो गया ही समझ' ऐसा कहा जा सकता है । यद्यपि अभी तो गृहस्थ है, कोई निश्चिय नही की साधना मे आगे बढ़ेगा भी या नही, या कदाचित साधना को छोड़ ही वैठेगा, परन्तु ख्याल मे धुन्धला सा कल्पित निश्चय करके उसके आधार पर उसे वर्तमान मे भगवान कहा जा रहा है । भगवान वन जायेगा" ऐसा भावि कालीन क्रिया का प्रयोग न करके 'भगवान हो चुका है" ऐसा भूत निष्पन्न काल सम्बन्धी ही प्रयोग कर दिया गया है, जो आप के चित्त मे कदाचित नम उत्पन्न कर सकता है, परन्तु प्रयोजन को समझ लेने पर ऐसा होना असम्भव है । यहां “ भगवान हो गया है" ऐसा कहने का प्रयोजन नहीं है, बल्कि "यदि