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१. नैगम नय
३. भूत र्वतमान व
भावि नैगम नय (अर्थ- अन्तरात्मा अवस्था मे तो बहिरात्म पना और परमात्म
अवस्था मे अन्तरात्मा व बहिरात्मा दोनो भूत पूर्व नय से वर्तमान है, जैसे पहिले घी भरा हुआ था इसलिये उस घड़े को वर्तमान मे भी घी का घडा कहते है, भले अब वह खाली ही क्यों न पडा हो ।)
इस नय को अनेकों अन्य नामों से भी पुकार जाता है-जैसे पूर्व प्रज्ञापन नय, भूत अनुग्रह तन्त्र नय, भूत प्रज्ञापन नय, भूत ग्राही नय, भूतपूर्व नय, भूत भाव प्रज्ञापन नय, भूत विषय नय, अतीतगोचर नय, भूत नय, भूत पूर्वन्याय इत्यादि । इस प्रकार इस नय के लक्षण उदाहरण व उद्धरण तो हो चुके, अव इसका कारण व प्रयोजन विचारिये।
___ वर्तमान ज्ञान की कल्पना मे स्पष्ट दीखने वाली उस की त्रिकाली पर्याये इस नय का कारण है, क्योकि यदि वहा वे न दीखती तो इस प्रकार भूत व वर्तमान पर्याय के जोड का सकल्प करना ही असम्भव था।
श्रोता को नीचा दिखाना या उसके पूर्व के अच्छे दिन याद दिला कर उसके चित्त में उसकी वर्तमान दशा के प्रति पश्चाताप उत्पन्न कराना, या उसका गर्व खण्डित करना, या उसकी कायरता को दूर करके उसे उन्नति पथ पर अग्रसर कराना आदि . अनेको इस नय के प्रयोजन व अभिप्राय हो सकते है।
भावि नैगम नय --
भूत नैगम नय वत भावि नैगम को भी समझना । अन्तर केवल इतना ही है कि वहा भूत कालीन विनष्ट पर्याय को वर्तमान मे आरोपित किया गया था, और यहा भावि कालीन अनुत्पन्न पर्याय को।