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३. भूत वर्तमान व भावि नैगम नय
१२. नैगम नय
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१ वृ. न. च. २०६ “निर्वृत्तार्थ क्रियाया. वर्तमान काले तु यत्समा
चरणम् । स भूत नैगम नयो यथाद्यदिने निवृत्तिर्वीरे। २०६।”
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(अर्थ-बीती हुई क्रिया का वर्तमान काल में जो ग्रहण करने मे आता है वह भूत नैगम नय है - जैसे ' आज दिन वीर भगवान मोक्ष पधारे हे " ऐसा कहना )
२. नय चक्र गद्य पृ. १२. “अतीत साम्प्रत कृत्वा निर्वाणत्वद्य येगिन । एव वदतिरभिप्रायो नैगमातीत वाचकः । १।”
(अर्थ:- अतीत काल को समक्ष करके "आज योगी राज निर्वाण गये है" ऐसा कहने का जो अभिप्राय है, वह भूत नैगम नय का वाचक है । )
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ग्रा पा।९। पृ. ७६ “अतीते वर्तमानारोपण यत्र स भूत नैगमो यथा अद्य दीपोत्सवे दिन श्री वर्द्धमान स्वामी मोक्ष गत ।
अर्थ - अतीत काल मे वर्तमान का आरोपण करना भूत नैगम नय है । जैसे "आज दीपावली के दिन श्री वर्द्धमान स्वामी मोक्ष पधारे है" ऐसा कहना )
४ नि सा । ता वृ । १६ “भूत नैगम नयापेक्षया भगवता सिद्धानामपि व्यञ्जन पर्यायत्वमशुद्धत्व च सम्भवति ।"
( अर्थ - भूत नैगम नय की अपेक्षा से सिद्धो को भी अशुद्ध व्यञ्जन पर्याय कहना सम्भव है | )
५ वृ. द्र स ।१४।४८ “अन्तरात्मावस्थाया तु बहिरात्मा भूत पूर्वन्यायेन घृतघटवत्, परमात्मावस्थायां तु पुनरन्तरात्म वहिरात्मद्वयं भूत पूर्वनयेनेति । "