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१२. नैगम नय
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३. भूत र्वतमान व
भावि नैगम नय प्रमाण ज्ञान के लघुम्राता भेद व अभेद ग्राही इस नैगम नय की ओर लखाने पर किसी भी पर्याय के रूप मे वस्तुको वर्तमान में ही देखा व कहा जा सकता है।
अथवा नैगम नय ज्ञान नय है, जिसका काम केवल कल्पना करना है । यह आवश्यक नहीं कि कल्पना सद्भ त पदार्थ को ही विषय करे। सद्भत व असद्भात सर्व ही पदार्थ कल्पना के विषय वन सकते है । भले ही वर्तमान में भूत या भविष्यत पर्याय असत् हों, पर क्या कल्पना पर भी यह प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है, कि वह दृष्ट ही पर्याय को ग्रहण करे अदृष्ट को नहीं ? कल्पना तो वर्तमान मे ही एक भिखारी को राजा और राजा को भिखारी बना सकती है, पर्वत को आकाश मे उडा सकती है और सागर को पर्वत के स्थान पर प्रतिष्ठित कर सकती है । उसके लिये कुछ भी असत् व असम्भव नही । अत वर्तमान पदार्थ मे झूठी या सच्ची भावि पर्याय का सकल्प करना अथवा वर्तमान पदार्थ मे भूत पर्याय का साक्षात्कार करना आदि सव कुछ अत्यन्त सहल है । इसी प्रकार किसी अर्ध निष्पन्न पर्याय मे पूर्ण निष्पन्न का सकल्प करना भी सम्भव है । उपरोक्त सकल्पो के आधार पर ही इस ज्ञान नय के भूत, भविष्य वर्तमान ऐसे तीन भेद हो जाते है जिन का पृथक पथक कथन आगे किया जायेगा।
(१) भूत नैगम नयः--
ज्ञान मे सकल्प द्वारा वर्तमान पदार्थ को भुत कालीन पर्याय के रूप मे देखना भूत नैगम नय कहलाता है । ऐसा कहते हुए भूतकालीन क्रिया (Tense) का प्रयोग करने में नही आता बल्कि वर्तमान काल सूचक ही प्रयोग किया जाता है, क्योकि ज्ञान मे वस्तु उस पर्याय के साथ तन्मय रूप से वर्तमान ही दीख रही है।