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१२. नैगम नय
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३ भूत वर्तमान व
भावि नैगम नय किया जा चुका है । अब आगे पीछे की पर्यायों में कथचित एकत्व दर्शाने के लिये, नैगम नय के कालकृत भेदो का विस्तार करने में आता है । जैसाकि पहिले बताया जा चुका है, नय प्रमाण-ज्ञान के अश का नाम है । प्रमाण-ज्ञान मे और वस्तु मे कुछ अन्तर है । वह यह कि वस्तु का विश्लेषण करने पर तो उसके सारे गुण तथा उन सब गुणो की उस समय वर्ती एक एक पर्याय ही किसी एक समय मे उपलब्ध होती है, परन्तु प्रमाण ज्ञान का विश्लेषण करने पर उस वस्तु के सम्पूर्ण गुण तथा उनकी त्रिकाल वर्ती सर्व पर्याये किसी भी एक समय मे उपलब्ध हो जाती हैं । कारण है यह कि वस्तु मे सारे गुण तो हर समय रहते है पर सारी पर्याये हर समय नहीं रहती, एक समय मे एक ही पर्याय रहती है, जबकि ज्ञान मे हर समय त्रिकाली पर्यायो का चित्रण पड़ा रहता है ।
वस्तु मे तो पर्याय आगे पीछे होती है, पर ज्ञान के चित्रण मे सर्व पर्याय युगपत पड़ी हुई है । वस्तु मे वर्तमान की एक पर्याय ही दिखाई देती है इसलिये वही सत् है और भूत व भविष्य की पर्याय विनष्ट व अनुत्पन्न होने के कारण असत् है, परन्तु ज्ञान मे एक ही समय में भूत वर्तमान व भविष्यत की सर्व पर्याये टकोत्कीर्णवत् पडी हुई होने के कारण वहा न कोई पर्याय विनष्ट होती है और न कोई अनुत्पन्न है, बल्कि वहा तो सब की सब वर्तमान है, और इसीलिये वहा सर्व पर्याय सत् ही है असत् एक भी नही । वस्तु मे काल कृत भेद के कारण पर्याये बदलती दिखाई देती है परन्तु ज्ञान मे कुछ भी परिवर्तन होता दिखाई नहीं देता । जहा सर्व ही पर्याये सत् है वहा परिवर्तन किस वात का ? वस्तु मै ही भूत वर्तमान व भविष्यत का विकल्प है, ज्ञान में नही, वहां तो सब कुछ वर्तमान ही है, भूतकाल की पर्याय भी वहां वर्तमान है और भविष्यत की भी वर्तमान है । भले वस्तु की अपेक्षा लेकर ज्ञान में पड़ी पर्यायो पर भूत व भविष्यत की मोहर लगा दे पर वहा तो भूत व भविष्यत कोई वस्तु ही नही ।