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१. नैगम नय सामान्य
वेदना, नामवेदना, गोत्रवेदना और अन्तरायवेदना, इस प्रकार वेदना आठ भेद रूप है । यहा एक समय के जीव क अखण्ड भाव को आठ भेद डालकर बताया जा रहा है |
१२. नैगम नय
४ ध । पु १३। पृ १३।१ "असंगहियणेगमणयभास्सिदूण लोगागास पदेशमेत्तधम्मदव्वपदे साणं पुध पुध लद्धदव्वववएसाणमण्णोष्ण पासुवलभादो । ३ । अवम्मदव्वमधम्यदव्वेण पुसिज्जति, तक्खध देस, पदेस' परमाणूणमस गहिपयणेगमणएण पत्तदव्वभावागमेयत्तदसणादो ।
अर्थ:- असग्राहिक नैगम नय की अपेक्षा लोकाकाश के प्रदेश प्रमाण और पृथक पृथक द्रव्य सज्ञा को प्राप्त हुए धर्म द्रव्य के प्रदेशों का परस्पर मे स्पर्श देखा जाता है | ३ | इसी प्रकार अधर्म द्रव्य अधर्म के साथ स्पर्श को प्राप्त होता है, क्योकि असग्राहिक नैगम नय की अपेक्षा द्रव्यभाव को प्राप्त हुए अधर्म द्रव्य के स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणुओ का एकत्व देखा जाता है ।
( यहा अखण्ड द्रव्यो मे भी खण्डित करके उनके प्रदेशों को पृथक पृथक द्रव्य रूप से स्वीकारा गया और इस प्रकार अद्वैत मे द्वैत डालकर उनका परस्पर सम्मेल दिखाया है ।) ५ स म । २८ 1 ३११।३ तत्र नैगमः सत्तालक्षण महासामान्यम्, अवान्तरसामान्यानि च द्रव्यत्वगुणत्वकर्मत्वादीनि, तथान्त्यान् विशेषान् सकलासाधारणरूपलक्षणान् अवांतरविशेषाश्चापेक्षया पररूपव्यावर्त्तनक्षमान् सामान्यान् अत्यन्तविनिलु ठितस्वरूपानभिप्रेति । "