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१२ नैगम नय
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१. नेगम नय सामान्य
अर्थ --नैगम नय सत्ता रूप सामान्य को, द्रव्यत्व, गुणत्व, कर्मत्व
रूप अवान्तर सामान्य को, असाधारण रूप विशेपको, तथा पर रूप से व्यावृत्त और सामान्य से भिन्न अवान्तर विशेपो को जानती है।
क्रमश-स म ।२८।३१५।२४ में उद्धत अन्यदेव हि सामान्य
मभिन्नज्ञान कारणम् । विशेपोऽप्यन्य ऐवेति मन्यते नगमो नय. ।।१।।
अर्थ:-नगम नय के अनुसार अभिन्न ज्ञान का कारण सामान्य
धर्म, विशेष धर्म से भिन्न है । ६ लक्षण नं०३ (धर्म धर्मी आदि रूप द्वैत में अद्वैत) १ स म (२८१३१७।२ में उद्धत “धर्मर्मिणोधर्मधामिणोश्च प्रधानो
पसर्जन भावेन यद्विवक्षण स नेगमो नेगम । सत् चेतन्यमात्मनीतिधर्मयो. । वस्तु पर्ययव द्रव्यमिति धर्मिणोः
क्षणमेक सुखी विषयासक्तजीव इति धर्मधार्मिणो । अर्थ ---दो धर्म अथवा दो धर्मी अथवा एक धर्म और एक धर्मी
ये प्रधान और गौणता की विवक्षाको नैगम अथवा नैगमनय कहते है।
जैसे 'सत् और चैतन्य दोनो आत्मा के धर्म है। यहा सत् और चैतन्य दोनो धर्मो मे चैतन्य विशेष्य होने से प्रधान धर्म है, और सत् विशेषण होने से गौण धर्म है। 'पर्यायवान द्रव्य को वस्तु कहते हैं। यहा द्रव्य और वस्तु दो मियों मे द्रव्य मुख्य और वस्तु गौण है । अथवा 'पर्यायवान वस्तु को द्रव्य कहते है' यहा वस्तु मुख्य और द्रव्य गौण है।