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________________ १२. नैग म नय २४० १. नैगम नय नामान्य अर्थ --सकल्प को निगम कहते है । उसमे जो होता है सोही नैगम है, ऐसा इस नय का प्रयोजन है । और प्रस्थादि लाने आदि का सकल्प करना इसका अभिप्राय माना गया। ५ का. अ. ।२७१ “जो साहेदि अदीदं, वियप्परुवं णेगमोविस्समत्थं च । संपतिकालाविट्ठ, सो हूणयो णेगमो यो ।" अर्थः-जो नय अतीत भविष्यत तथा वर्तमान को सकल्प मात्र सिद्ध करता है वह नैगम नय है । २ लक्षण नं०२ (अद्वैत में द्रुत ग्राही)१ ध । पु ६ पृ १८१।२ "न एकगमो नंगम ।" । अर्थ:-जो एक को विषय न करे अर्थात भेद व अभेद दोनो को विपय करे वह नैगम नय है । २. ध । पु० १३। पृ. १६६।१ "नैकंगमोनैगमः द्रव्यपर्यायद्वय मिथो विभिन्नमिच्छन्न नैगम इति यावत् ।" अर्थः-जो एक को नही प्राप्त होता वह नैगम है ।जो द्रव्य और पर्याय इन दोनों को आपस मे अलग अलग स्वीकार करता है वह नैगम है, यह उक्त कथन का तात्पर्य है । नि ३ ध. । पु० १० सूत्र १।पृ १३ "नगम व्यवहाराणं गाणावरणीय वेयणा दशणावरणीय वेयणा वेयणीय-वेयणा मोहणीय वेयणा आउववेयणा णामवेयणा गोदवेयणा अंतराइयवेयणा ।" अर्थः-नैगम व व्यवहार नय की अपेक्षा ज्ञानावरणीय वेदना, दर्शनावरणीयवेदना, वेदनीयवेदना, मोहनीयवेदना, आयु
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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