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३. द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक
नय सामान्य
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११. शास्त्रीय नय सामान्य निमित्त से कुछ कार्य की सिद्धि सम्भव है । क्षेत्र की अपेक्षा एक से अधिक प्रदेशो का परस्पर में स्पर्श देखना द्रव्यार्थिक नय का विषय है जैसे द्रव्य अनेक प्रदेशी है । और केवल एक प्रदेश की पृथक सत्ता को देखना पर्यायार्थिक नय का विषय है । इस नय से एक प्रदेशी ही द्रव्य हो सकता है, इससे बड़ा नही । काल की अपेक्षा एक से अधिक पर्यायों की परस्पर में एकता देखना द्रव्यार्थिक नय का विषय है जैसे तिर्यंच व मनुष्य आदि रूप से परिणमन करने वाला एक ही जीव है । और पूर्व व उत्तर पर्यायों से रहित केवल वर्तमान पर्याय मात्र ही द्रव्य की सत्ता देखना पर्यायार्थिक नय का विषय है जैसे मनुष्य विशेष एक स्वतंत्र द्रव्य है । इस नय से पर्याय ही स्वयं द्रव्य है, अतः न द्रव्य पर्याय का कारण है और न पूर्व पर्याय ही उसका कारण है । वास्तव मे वहा कार्य कारण भाव ही घटित नही होता । भाव की अपेक्षा एक से अधिक भावों की परस्पर में एकता देखना द्रव्यार्थिक नय का विषय है, जैसे ज्ञान दर्शन आदि गुणो का समूह जीव है । और केवल स्वलक्षण भूत एक रसात्मक कोई एक व अविभागी भाव स्वरूप ही द्रव्य को देखना पर्यायार्थिक नय है । इस नय से एक द्रव्य मे अनेक गुण नही हो सकते, तथा किसी एक गुण मे भी शक्ति की हानि बृद्धि नही हो सकती ।
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अधिकार नं ८ के अन्त मे नय के भेद प्रभेदों का चार्ट दिया गया है । पाठक गण एक बार यहां उस पर दृष्टि पात कर ले । वहा नयो के भेद दो अपेक्षाओं से करने मे आये है - आगम पद्धति से और अध्यात्म-पद्धति से । इन दोनों मे पहिले आगम पद्धति की अपेक्षा नयो का प्ररूपण करूंगा । उस मे दो अपेक्षाये है - शास्त्र की तथा वस्तु की। यहां पहिले शास्त्रीय दृष्टि से नयों का कथन करूंगा, तत्पश्चात वस्तु की अपेक्षा से । प्रकृत मे सात नये है नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजु सूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत । इनमे से नैगम, संग्रह व व्यवहार ये तीन नये द्रव्याथिक है और ऋजुसूत्र नय पर्याया