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_११. शास्त्रीय नय मामन्य २२२ ४ सप्त नय परिचय
सामान्य थिक । शब्दादि आगे तीन की नये यद्यपि शब्द नय के भेदो में गभित है, परन्तु इनको पर्यायाथिक ही समझा जाता है, क्योंकि इनका विषयभूत शब्द स्वय एक व्यञ्जन पर्याय है।
नय की उपरोक्त दोनो श्रेणियो मे इतना अन्तर है कि शास्त्रीय सात नये तो विपय भूत वस्तु की उत्तरोत्तर सूक्ष्मता को दृष्टि मे रखकर उत्पन्न हुए है और वस्तु भूत अगली नये केवल वस्तु मे दीखने वाले अनेको सरल विकल्पो को दृष्टि मे रखकर उत्पन्न हुए है । इन सात नयों की उत्तरोत्तर सूक्ष्मता आगे वताई जाने वाली है।
नयों के उपरोक्त सात भेदो के नाम है-नंगम, सग्रह, व्यवहार ४ सप्त नय ऋजु सूत्र, शब्द, समाभिरूढ़ व एवभूत। इनके भी
सामान्य आगे अनेक उत्तर भेद हो जाते है, जैसाकि पहिले अधिकार न. ८ मे नयो का चार्ट बना कर दर्शाये गये है। उनका विशेष कथन उस उस नय की व्याख्या करते समय किया जायेगा। यहा तो केवल इनका सामान्य व सक्षिप्त परिचय देना ही दृष्ट है ।
जैसा कि पहिले वताया गया है नैगम नय ज्ञान नय भी है और अर्थ नय भी है । अत इस नय के दो लक्षण होते है-एक ज्ञान नय की अपेक्षा और एक अर्थ नय की अपेक्षा । ज्ञान नय की अपेक्षा यह नय सकल्प मात्र ग्राही है । अर्थात कोई एक विचारक जब केवल सकल्प या कल्पना के आधार पर किसी भी पदार्थ का चितवन करने लगता है अथवा कोई वक्ता अपनी उस कल्पना का कथन करने लगता है तव उसके ज्ञान मे प्रतिभासित वह कल्पित विषय, यद्यपि असत् है परन्तु नैगम नय की दृष्टि से सत्ताभूत कहा जाता है। नंगम नय ज्ञान नय होने के कारण सत् व असत् दोनों को विषय कर सकता है, क्योकि कल्पना या संकल्प के लिये कोई ऐसा नियम नहीं कि वह सत्ताभूत पदार्थ के सम्बन्ध मे ही उत्पन्न हो । सत्ताभूत