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३. द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक नय सामान्य
११. शास्त्रीय नय सामान्य
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मे आगे पीछे उदय होने वाला हर्ष व विषाद क्योकि यहां भी जो हर्ष का स्वरूप है वही विषाद का नहीं है' इस प्रकार का विसदृश प्रत्यय प्राप्त होता है ।
तात्पर्य यह कि एक ही समय में अनेक पदार्थों में रहने वाली एक जातीयता तथा एक द्रव्य के अनेक गुणों में रहने वाला एक अन्वय तिर्यक् सामान्य है तथा अनेक समयवर्ती अनेक पर्यायों मे रहने वाला एक अन्वय (अनुस्यूत द्रव्य) उर्ध्व सामान्य है । इसी प्रकार एक समय में अनेक पदार्थों में रहने वाली व्यक्तिगत पृथकता तथा एक द्रव्य के अनेक गुणों में रहने वाली विसदृशता तिर्यक् विशेष है और एक द्रव्य की आगे पीछे अनेक समयों में होने वाली पर्यायो की परस्पर असमानता उर्ध्व विशेष है 'तिर्यक' शब्द क्षेत्र वाची है और 'उर्ध्व' शब्द काल वाची । इस प्रकार सामान्य व विशेष का स्वरूप यथा योग्य रूप से सर्वत्र समझना इस ग्रंथ में जहां भी सामान्य या विशेष ये दो शब्द प्रयुक्त हों वहा वहा उपरोक्त अर्थो मे से यथा योग्य कोई एक अर्थ समझ लेना ।
पर्यायार्थिक
नय सामान्य
वस्तु में नित्य - अनित्य, एक-अनेक, सत-असत्, तत्-अतत् आदि ३ द्रव्यार्थिक व अनेकों सामान्य व विशेष अंश पाये जाते हैं । नित्यत्व, एकत्व, सत् व तत् उसके सामान्य अंश हैं और अनित्वत्व अनेकत्व असत व अतत उसके विशेष अंश है । इन सर्व सामान्य व विशेष अंशों का एक रसात्मक अखण्ड पिण्ड वस्तु है । इनमें से कोई भी एक अंश जिस दृष्टि में ग्रहण किया जाय उस दृष्टि विशेष को नय कहते है अथवा परिवर्तन पाते हुए जैसे बदलते हुए भी उस पदार्थ में, 'यह वही है' इस प्रकार का उर्ध्व सामान्य ग्रहण जिस दृष्टि से होता है उसे नित्य ग्राहक सामान्य दृष्टि या नय कहते हैं, और उसकी परिवर्तन शील आगे पीछे की विभिन्न पर्यायों या अवस्थाओं में पृथकता देखते हुए 'यह वह