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११ शास्त्रीय नय सामान्य २१६ २. वस्तु के सामान्य व
विशेष अश अर्थात्मक वस्तु का विश्लेपण करने पर उसमे दो मुख्य अश दृष्टिगत होते है--सामान्य अश और विशेष अंश । अनेक अर्थों में रहने वाली एकता को सामान्य अश कहते हैं और एक अर्थ में रहने वाली अनेकता को विशेप अंश कहते है । वह सामान्य दो प्रकार का है-तिर्यक् सामान्य व ऊर्ध्व सामान्य । एक कालवर्ती व अनेक क्षेत्रवर्ती अनेक पदार्थों मे रहने वाली एकता को तिर्यक् सामान्य कहते है-जैसे खडी मुडी आदि अनेक गौवों में रहने वाला एक गोत्व सामान्य । इसे सादृश्य सामान्य भी कहते हैं, क्योंकि इसमें 'यह भी गौ है, यह भी गौ ही है, यह भी गौ ही है' इस प्रकार का सादृश्य प्रत्यय प्राप्त होता है । एक कालवर्ती तथा एक क्षेत्रवर्ती अनेक पदार्थों में रहने वाली एकता भी तिर्यक् सामान्य है-जैसे कि एक द्रव्य के अनेक सहभावी गुणो में अथवा उसके अनेक प्रदेशों में रहने वाली एकता; क्योंकि इसमें भी 'इस गुण व प्रदेश रूप भी वही एक द्रव्य है जो कि उस दूसरे गुण व प्रदेश रूप है' इस प्रकार तद्भाव प्रत्यय की प्राप्ति हो रही है। अनेक कालवर्ती व एक क्षेत्रवर्ती अनेको अमवर्ती अवस्याओ मे अनुस्यूत एक द्रव्य ऊर्ध्व सामान्य है-जैसे आगे पीछे प्रगट होने वाली वालक युवा वृद्ध आदि अनेक अवस्थाओं में अनुस्यूत एक मनुष्यत्व, क्योंकि यहा भी, 'यह भी वही मनुष्य है जो कि पहिले बच्चा था' इस प्रकार के एकत्व' प्रत्यय की प्राप्ति हो रही है।
विशेप अंश भी दो प्रकार का है-तिर्यक् विशेप व ऊर्व विशेष । एक काल व एक क्षेत्रवर्ती अनेक विभिन्न पदार्थों में रहने वाली व्यक्तिगत पृथकता तिर्यक् विशेष है-जैसे अनेक गौओं में रहने वाली अनेकता, क्योंकि यहां जो यह गाय है वही यह दूसरी नही है' इस प्रकार व्यतिरेकी प्रत्यय प्राप्त होता है ।। अनेक कालवर्ती व एक क्षेत्रवर्ती आगे पीछे होने वाली एक ही द्रव्य की अनेक पर्यायों मे रहने वाली पृथकता ऊर्ध्व विशेष है-जेसे एक व्यक्ति