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६. नय की स्थापना १६२
६. नयो के मूल भदो
का परिचय इसी प्रकार अनेक पर्यायो का समूह द्रव्य है ऐसा कहना द्रव्यार्थिक दृष्टि है और एक वर्तमान पर्याय मात्र ही द्रव्य है ऐसा कहना पर्यायार्थिक है । अनेक गुणो का समुदाय द्रव्य को द्रव्याथिक है और एक गुण मात्र ही द्रव्य कहना पर्यायाथिक है । वियप आगे जानने मे आयेगा ।
यहा यह प्रश्न हो सकता है कि मूल नये दो ही क्यो कहे गए। जिस प्रकार द्रव्य को विषय करने वाला द्रव्यार्थिक, पर्याय को विषय करने वाला पर्यायाथिक, उसी प्रकार गण को विषय करने वाला एक गुणायिक नय भी कहना चाहिये था । सो इस प्रश्न का उत्तर राजवातिकारकार ने निम्न प्रकार
दिया है
(रा.वा.।५।३८।२।५०१।२.)
द्रव्यस्य द्वावात्मनी सामान्य विशेषश्चेति । तत्र सामान्यमुत्सर्गोऽन्वयः गुण इत्यनर्थान्तरम् । विशेपो भेदः पयोयोति पर्याय शब्दः । तत्र सामान्य विषयो नयो द्रव्याथिक. । विशेष विषय पर्यायाथिकः । तदुभयं समुदितमयुतसिद्धरूपं द्रव्यमित्युच्यते, न तद्विषयस्तुतीयो नयो भवितुमर्हति, विकलादेशत्वान्नयानाम् । तत्समुदायोऽपि प्रमाणगोचरः सकलादेशत्वात् प्रमाणस्य ।"
अर्थः-द्रव्य के सामान्य और विशेष ये दो स्वरूप है । सामान्य, उत्सर्ग, अन्वय और गुण ये एकार्थक शब्द है। विशेष, भेद और पर्याय ये पर्यायाथिक शब्द है । सामान्य को विषय करने वाला द्रव्याथिक नय है, और विशेष को विषय करने वाला पर्यायाथिक । दोनो समुदित-अयुतसिद्ध द्रव्य हैं । अतः गुण जब द्रव्य का ही सामान्य रूप है, तब उसके ग्रहण के लिये द्रव्याथिक से पृथक गुणाथिक नाम के किसी तीसरे नय