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ह नय की स्थापना
१८८ ८. जय का उदाहरण, लक्षण,
कारण व प्रयोजन भी वह यह समझ पाता है, कि पिता मुझे स्कूल से छुटटी दिला रहे है ? वह तो उसका अर्थ यही समझता है, कि वह मना तो खेलने को कर रहे है, स्कूल जाने को नही । अब जरा मिलाइये तो सही वाक्य के शब्दार्थं से इस ग्रहण किये गये अर्थ को । क्या मेल खाता है ? दोनो मे स्पष्ट विरोध' है । खेल का शब्द भी उसमे आया नही फिर भी खेल का अर्थ कैसे निकल आया ? बस इसे ही मं दृष्टि फी पहिचान कह रहा हू । लौकिक दृष्टान्त सुन कर श्रोता कहता है कि इस वाक्य को बोलने वाले व्यक्ति का अभिप्राय मै समझता हूं, इसीलिये विरोध नहीं होता, भले शब्दार्थ कुछ भी हो ।
बस तो पारमार्थिक मार्ग मे भी इस जाति का वाक्य आने 'पर ऐसा ही अर्थ समझ लेना । जैसे कि बाह्य त्याग मे सन्तोष पाकर अभिमान को प्राप्त किसी त्यागी को यदि में यह कहू कि, "यह त्याग तेरे कुछ काम न आयेगा। इससे अच्छा तो इस त्याग को छोड दे, तो इस वाक्य मे से त्याग को छोड़ने का अर्थ ग्रहण न करना, बल्कि ज्ञान प्राप्त करने को कहा जा रहा है, ऐसा समझना । भले ज्ञान शब्द वाक्य मे न आ पाया हो पर मेरी दृष्टि मे से पढ लेना । क्योकि तुम पारमार्थिक दिशा में प्रयुक्त वाक्यो का अर्थ लगाने मे व दृष्टि को स्वतः समझने मे अभी अभ्यस्त नही हुए हो, इसलिये सम्भव है कि कदाचित मेरे वाक्य का ठीक-ठीक अर्थ न लगा सको और तुम्हारे हृदय मे संशय जागृत हो जाये । ऐसे अवसर पर मै उस दृष्टि का प्रतिनिधित्व करने वाला वह नाम जो कि सज्ञा करण के द्वारा एक वार निश्चित कर लिया गया है वोल दूगा । वस तुम समझ लेना कि अमक दृष्टि को लक्ष्य मे रखकर कथन किया गया है, और शका दूर हो जायेगी । , आगे के प्रकरण मे दृष्टि को नय शब्द के द्वारा ही सर्वत्र । कहा जायेगा यह याद रखना ।