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६. नय की स्थापना
१८४८. नय का उदाहरण, लक्षण,
कारण व प्रयोजन . यह जो दृष्टि का भाव तुम इन उदाहरणो - के आधार
पर ग्रहण कर पाये हो, बस यही उस नाम से चिन्हित नय का लक्षण है । या यो कहिये कि इन उदाहरणों के आधार पर सिध्दान्त रूप से नय का लक्षण निर्धारित कर दिया जाता है, ताकि श्रोता उस लक्षण को भाव सहित शब्दो मे याद करले और वह नाम सामने आने पर तुरत उस भाव को पकड सके । इस प्रकार नय का कोई न कोई लक्षण अवश्य होता है ।
यह नय क्यो उत्पन्न हुई ? इस प्रश्न का उत्तर स्पष्ट है कि वस्तु मे या तदनुरूप प्रमाण ज्ञान मे वस्तु के उस अग का स्पष्ट प्रतिभास हो रहा है । और इस अग को देखने से श्रोता के हृदय पर कुछ ऐसा प्रभाव पड़ेगा जिससे कि वह वर्तमान की निराशा व पुरूषार्थ हीनता या अभिमान को छोड़ कर हित को जीवन मे अपनाने के प्रति कुछ उद्यमशील हो जायेगा। बस यही नय के प्रयोग का कारण है।
श्रोता में हेयोपादेय दृष्टि उत्पन्न करने के लिये किसी अग को उभारना और किसी अग की हानियो को दर्शाना ही नय प्रयोग का प्रयोजन है । क्योकि हेयोपादेय दृष्टि बने बिना श्रोता का कल्याण मार्ग पर आगे बढना असम्भव है।
इस प्रकार नय वही कार्य कारी होती है जिसमें निम्न बातें पाई जाये । इन बातों से शून्य केवल शब्द मात्र नय की रटन्त निरर्थक व मिथ्या है.
१. नय के भाव को किसी न किसी उदाहरण के आधर'
पर निश्चित किया जाना चाहिये।
। २. निर्धारित भाव के आधार पर शब्दों मे उस नय का __ कोई सिद्धांतिक रूप प्रगट करने वाला लक्षण होना
चाहिये ।