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बिना विचारे स्वत ही वह उस की दृष्टि को यह किस बात को लक्ष्य में रखकर यह वाक्य कह तर तो ऐसा ही होता है, पर फिर भी कही कही उसे सशय व शंका होने की सम्भावना रहती है । उस समय उसकी शंका को दूर करने के लिये, दृष्टि का यह उपरोक्त सज्ञा करण या नय का नाम बहुत उपयोगी पडता है । उसे केवल यह संकेत कर देना ही पर्याप्त है कि भाई ! यह वाक्य मैने अमुक नय से कहा है' । बस इन दो शब्दो को सुनते ही तुरन्त उसका लक्ष्य वक्ता के लक्ष्य से जा टकराता है और दो सैकेन्ड मे गुत्थी सुलझ जाती है । वह ठीक ठीक अर्थ समझ जाता है और उसकी शका कथन क्रम में विशेष बाधक होने नही पाती । बस यही है नयों के नाम रखकर उन का प्रयोग करने, अर्थात् हवाला देने का प्रयोजन ।
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नय की स्थापना
८. नय का उदाहरण लक्षण कारण व प्रयोजन
पहिचान जाता है, कि
रहा है | अधिक
८ नय का उदाहरण
अब प्रश्न यह होता है, कि वक्ता की उन प्रमुख दृष्टियो या यों को कैसे समझा या समझाया जाये । सो यद्यपि कठिन काम है, परन्तु सम्भव है । हां
लक्षण कारण व प्रयोजन
बुद्धि का प्रयोग अवश्य मागता है, क्योकि नय के नाम या शब्द को याद करके सतोष पाना निरर्थक है । वक्ता के भाव को पकड़ना है । भावो को समझाने या गले से नीचे उतारने के लिये दृष्टान्त व उदाहरण ही एक मात्र उपाय है । लौकिक दिशा मे नित्य कहे व सुने जाने वाले कुछ वाक्य उदाहरण के रूप मे सामने लाये जाते है और श्रोता को कहा जाता है कि ऐसा वाक्य बोलते या सुनते समय तुम्हें विरोध क्यों नही होता, जबकि वाक्य का शब्दार्थ बिल्कुल उल्टा सा भासता है । जैसे कि अपने खिलाड़ी पुत्र को धमकाते हुए जब पिता उसे यह कहता है कि 'क्यो मेरा पैसा व्यर्थ बरबाद कर रहा है । इससे अच्छा तो "स्कूल न जाया कर" तो वह पुत्र उसका अर्थ उलटा क्यों नही समझ जाता । " स्कूल न जाया कर" का अर्थ क्या कभी
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