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८ सप्त भगी
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३ स्व व पर चतुष्टय
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स्व क्षेत्र है, उसकी पर्याये ही उसका स्वकाल है और उसके गुण उसका स्व-भाव है । वस्तु इस चतुष्टय से गुम्फित एक रस रूप है। कहने मात्र के लिये ही ये चार है, वास्तव में एक ही है, क्योंकि तीन काल मे कभी ये बिखर कर वस्तु से पृथक नही हो सकते, या यों कह लीजिये कि इससे शून्य वस्तु असत् है।
लोक मे अनन्तों वस्तुये है-जो सर्व चेतन व अचेतन इन दो प्रमुख जातियों मे या मूर्त व अमूर्त इन दो प्रमुख जातियों में विभाजित की जा सकती है । वे सर्व ही अपने अपने विशेषों मे अवस्थित रहने के कारण अपने अपने ही चतुष्टय की स्वामी है । इसलिये वस्तु का अपना एक चतुष्टय तो उसका स्व चतुष्टय है और अपने से अन्य सर्व वस्तुओ के अनेक चतुष्टय उसके लिये अन्य चतुष्टय है या पर चतुष्टय है । जैसे कि में और आप दोनों ही जीव द्रव्य है, दोनों ही सस्थान वाले है, दोनो ही पर्याय वाले है, और दोनों ही गुण पिण्ड हैं । परन्तु आप आप ही है और मैं में ही हूँ, आप का सस्थान आपका ही है और मेरा सस्थान मेरा ही है, आप के रागादि विकल्प आपके ही है और मेरे रागादि बिकल्प मेरे ही है, आपके ज्ञानादि गुण आप के ही है और मेरे -ज्ञानादि गुण मेरे ही है । आप कभी भी मै रूप से नही है और मैं कभी आप रूप से नहीं हूँ, इसी प्रकार आपका संस्थान रागादि व ज्ञानादि कभी मेरे नही है और मेरा संस्थान रागादि व ज्ञानादि कभी आपके नहीं है । यद्यपि आपका यह चतुष्टय बिल्कुल मेरी जाति का है परन्तु मेरे वाला ही नही है और इसी प्रकार मेरा भी चतुष्टय
आपके वाला नही है । इसलिये आपका चतुष्टय आपके लिये तो स्व चतुष्टय है पर मेरे लिये वही पर चतुष्टय है, तथा मेरा चतुष्टय मेरे लिये तो स्वचतुष्टय है और आपके लिये वही पर चतुष्टय है । इसी प्रकार जगत के सर्व पदार्थों में लागू करना। ,