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८ सप्त भंगी
१५० २ वस्तु के वक्तव्य व अवक्तव्य
दो अंग ३ स्त्र व पर चतुष्टय ये है-१. अस्ति, २. नास्ति, ३. अस्ति नास्ति, ४. अवक्तव्य, ५. अस्तिअवक्तव्य, ६ नास्ति अवक्तव्य, ७ अस्ति नास्ति अवक्तव्य ।
कल्पना करो कि ऐसे अज्ञात पदार्थ का ज्ञान अत्यन्त अनिष्णात २. वस्तु के वक्तव्य श्रोता को कराने के लिये कोई भी ज्ञानी वक्ता व अवक्तव्य दो अग क्या करेगा ? वह जानता है कि प्रत्येक पदार्थ की भाति इसमे भी दो मुख्य अश विद्यमान है-एक वक्तव्य और दूसरा अवक्तव्य । वक्तव्य अश के ज्ञान के बिना अवक्तव्य अंश की पकड़ होनी असम्भव है, और अश अवक्तव्य अंश के भान बिना वक्तव्य अश
का ज्ञान निरर्थक है। इसी कारण प्रत्येक विज्ञान के दो अंग है एक सिद्धां तिक (Theoritical) और दूसरा अनुसन्धानिक (Practical)दोनो मे सिद्धातिक अग वक्तव्य है तथा सुना जाने योग्य भी, और अनुसंधानिक अग अवक्तव्य पर अनुभवनीय है । यह अवक्तव्य अग भी "अवक्तव्य है" ऐसे वचन द्वारा प्रगट किया जा सकने के कारण कथाचित वक्तव्य है।
यहां यह जो पहिला वक्तव्य अग है वह दो प्रकार का है-एक तो विवक्षित पदार्थ के स्व धर्मो की उस उस रूप से व्याख्या स्वरूप दूसरा उन्ही धर्मो के समान अन्य पदार्थों के धर्मो के निषेध स्वरूप जैसे कि “यह वस्त्र लाल है काला नहीं' ऐसा कहना । पहिले का नाम अस्ति धर्म है और दूसरे का नास्ति ।
वस्तु के स्व चतुष्टय का स्वरूप पहिले दर्शाया जा चुका है। ३. स्व व पर द्रव्य गुण व पर्याय आदि वस्तु के सर्व विशेषों का इसी में चतुष्टय अन्तर्भाव हो जाता है, इसलिये कथन पद्धति को सरल बनाने के लिये, सामान्य व विशेष वस्तु का कथन करते समय, वस्तु, के इस स्वचतुष्टय का आश्रय लेना ही पर्याप्त है । गुण व पर्यायों का अधिष्ठान 'द्रव्य' कहलाता है, उस द्रव्य का संस्थान या आकृति उसका