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८ सप्त भगी
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४ अस्ति नास्ति भग
उपरोक्त प्रकार प्रत्येक पदार्थ की सत्ता तभी सिद्ध की जा सकती ४ अस्ति है, जबकि उस पदार्थ को चारो ही अपेक्षाओं से अन्य नास्ति भग पदार्थ से व्यावृत्त कर दिया जाये, अन्यथा तो पदार्थो का परस्पर मे सम्मेल हो जाने के कारण अथवा दोनो के चतुष्टयों मे परस्पर आदान प्रदान हो जाने के कारण सर्व सकर व सर्व शून्य दोषो का प्रसग प्राप्त होता है। अर्थात् यदि पदार्थ के लिये अपने ही चतुष्टय मे रहने का नियम न हो तो कदाचित यह संभव है, कि वह अन्य के चतुष्टय को छीन ले और अपना चतुष्टय किसी अन्य को दे दे । और यदि ऐसा हो जाये तो मे तो आप बन जाऊँ और आप मै वन जाये, अथवा जीव तो जड बन जाये और जड़ जीव वन जाये । इस प्रकार लोक मे पदार्थो की सत्ता की तथा स्वभाव की कोई भी निश्चित व्यवस्था न रह जाये । भोजन करते करते ही जिव्हा पर पडा हुआ ग्रास चूहा बनकर जिव्हा को काट खाये । परन्तु न तो ऐसा कभी हुआ है कि और न हो सकता है।
इसी बात को एक सिद्धात के रूप मे यदि कहने लगू तो ऐसा कहूगा, कि प्रत्येक पदार्थ स्वचतुष्टय मे ही अवस्थित है, पर चतुष्टय मे नही, अथवा स्व चतुष्टय ही उसके लिये सत् स्वरूप है पर चतुष्टय नही, अथवा स्व चतुष्टय की अपेक्षा ही उस वस्तु का अस्तित्व है, पर चतुष्ट को अपेक्षा नही। या यो कह लीजिये कि स्व चतुष्टय की अपेक्षा तो वह और उसकी अपेक्षा स्व चतुष्टय तो अस्तित्व रूप है या अस्तित्व स्वभावी है, और परं चतुष्टयं की अपेक्षा वह और उसकी अपेक्षा पर चतुष्टय नास्तित्व रूप है या नास्तित्व स्वभावी है । उदाहरणार्थ आप अपने स्व-चतुष्टय की अपेक्षा तो अस्तित्व रूप हे और मेरे चतुष्टय की अपेक्षा नास्तित्व रूप है । यदि दोनों ही चतुष्टयो की अपेक्षा आप अस्तित्व रूप या अस्तित्व स्वभावी होगे तो हम दो न होकर निश्चय से एक ही हो जायेगे, और इस प्रकार सकल व्यवस्था विच्छिन्न हो जायेगी। । । । । । ।