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७. आत्मा व उसके अगं १३६
१० वस्तु मे पाचो
भावो का दर्शन शमिक व औपमिक भी कैसे हो सकते है । क्योंकि जब अगदि है ही नही तो उसका कुछ देर के लिये दवना या उसमे आशिक कमी होने का प्रश्न ही कैसे हो सकता। ': ।। ।।.
___ हाँ साधक जीवं मे पाचो भाव उपलव्य हो सकते है । पारिणामिक तो है ही । जब-तक ज्ञान मे कुछ भी कमी है तब तक वहा औदयिक भाव विद्यमान है। साधक मे वेदना गुण तो पूर्ण शान्त होना सम्भव नहीं है । हां आशिक शाति आने के कारण से वहा क्षायोपशमिक सुख है । चारित्र व श्रध्दा यह दोनों गुण क्षायिक, औपशमिक या क्षायोपशमिक तीनो प्रकार के हो सकते है । इस प्रकार यथा योग्य रीति से वहा पांचों भावो की व्यक्ति सिध्द है ।
- अब इन पाचों भावो को यथा योग्य रीति से वस्तु मे या आत्मा १० वस्तु मे मे कैसे पढा जाये सो दृष्टात देकर समझाता हूँ। मेरे पाचो भावो पास एक सोने का जेवर है । इसे सुधवाना अभीष्ट का दर्शन- है। शोधन करने के लिये इसको गला कर इसमे कुछ चान्दी मिला दी गई। अब यह बजाये सुनहरी के सफेद दीखने लगा। सफेद होते हुये भी इसे हम सोना ही कह रहे हैं । यह तो इसका औदयिक भाव समझिये, क्योकि इसमे पर पदार्थ के संयोग से अत्यन्त तन्मयता-इतनी कि अपना सुनहरी रूप भी खो बैठा, पाई जाती है । अब इसे तेजाब मे डालकर अग्नि पर पकने के लिये रख दिया गया । धीरे धीरे चान्दी अन्य ताम्बे आदि खोट को लेकर तेजाब मे घुलने लगी । जू जू वह तेजाब मे घुलने लगी तूतू सोने की उन सफेद डलियो का रग कुछ कुछ बदलने लगा । पूरा नहीं बदला । यह उसका क्षायोपशमिक भाव समझिये । कुछ देर के पश्चात चान्दी सारी की सारी तेजाब मे घुल गई उसके साथ साथ और सारा खोट भी घुल “ गया, और सोने की छोटी छोटी डलिये पृथक पड़ी रह गई। तेजाब निकाल कर पृथक बर्तन मे कर दिया गया । अन्दर पड़ी स्वर्ण की