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७. आत्मा व उसके अग
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६. भावो का स्वामित्व
४ यद्यपि यह स्वयं उत्पत्ति विनाश रूप पर्यायों से अतीत है, पर
वस्तु या गुण की प्रत्येक पर्याय मे इस की झलक ओत प्रोत . है । यह न हो तो वह वह पर्याय अपने एक जातीय भाव को स्थिर न रख सके।
५ यह शुद्ध व अश द्ध पने से अतीत त्रिकाली शुद्ध है। इसकी शुद्धता क्षायिक भाव वत अशुद्धि को दूर करके उत्पन्न नहीं होती। अतः क्षायिक भाव की शुद्धता और इसकी शुद्धता' मे महान अन्तर है।
६ यह अन्य किसी भी पदार्थ के संयोग वियोग से तथा अपेक्षाओं
से अतीत सर्वथा निर्पेक्ष सहज सिद्ध भाव है ।
७ यह स्वभाव रूप है ।
इस प्रकार आत्म नाम पदार्थ के चार प्रमुख गुणो का, उनकी प्रमुख ६ भावो का प्रमुख पर्यायों का, उन पर्यायो कीशुद्धता व अशुद्धताक स्वामित्व इसक्षणिक शुध्दता अशध्दता के आधार भूत क्षायिक आदि चार भावो का, तथा त्रिकाली ध्रुवभाव समान्य रूप पचम परम पारिणामिक भाव का परिचय देकर, आत्म पदार्थ की धुंधलीसी रूप रेखायें आपके हृदय पर पट बनाने का प्रयत्न किया गया, ताकि आगे आने वाले प्रकरणों मे नयो को लागू करते समय कुछ सुविधा रहे ।
यहा तक तो गुणो के आधार पर बात की । अब आत्म पदार्थ रूप अखण्डित वस्तु के आधार पर करकै दर्शाने मे आती है। आत्मा प्रदाथ सामान्यत तीन प्रकार से विचार ने मे आया है साधारण ससारा आत्मा, सिद्ध आत्मा व साधक आत्मा । साधारण ससारी आत्मा मे केवल तीन भाव ही होते है. पारिणामिक, औदायिक व क्षायाप शमिक । परिणामिक तो स्वभाव रूप होने के कारण सब मे है ही।