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७. आत्मा व उसके अग
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5. पारिणामिक भाव
सर्वथा निरपेक्ष है । इसमे हानि वृद्धि या शुद्धि-अशुद्धि नहीं होती अतः त्रिकाली शुद्ध है । इसमे सादि अनादि पन की विवक्षा भी नही होती, अत यह कोई पर्याय तो है ही नही । पर इसे गुण भी कह नहीं सकते । क्योकि जानना और बात है जानने की.शक्ति और बात है, और जानन पना और बात है । जानन पने को धारण करने वाली शक्ति का नाम जानन शावित या ज्ञान गुण है । पर जान न पना तो स्वय कोई शक्ति नही। शक्ति तो उसे कहते है जो कि कुछ कार्य कर सके, अर्थात जो पर्याय रूप से बदल कर प्रगट हो जाये उसे तो गुण व शक्ति कहते है, परन्तु जिसमें प्रगट होने व दब जाने की कोई अपेक्षा ही नही पड़ती हो, उसे शक्ति नही कह सकते वह तो उस शक्ति का सार या abstract है। जैसा कि ऊपर के दृष्टांतों से सिद्ध किया गया । इसके अतिरिक्त भी गर्मी पना, रस पना, इत्यादि जितने भी भाव सामान्य गुणो का सार दर्शाने के लिये, या चिन्मात्र, जड़मात्रादि भाव, अखंड व एक रसरूप वस्तुओ का सार दर्शाने के लिये प्रयुक्त करने मे आते है वे सब उन उन गुणों व वस्तुओं के पारिणामिक भाव समझने । ऊपर जिसे शक्ति कहते आये थे, उसे ही यहा और अधिक सूक्ष्म बनाकर शक्ति से भी दूर केवल अखण्डित ध्रुव भाव सामान्य रूप से सिद्ध किया है ।
पारिणामिक माव के सम्बन्ध में निम्ननियम याद रखनेः
१ यह वस्तु या गुण का सार मात्र भाव होता है। जैसे कि
जानन मात्र या स्वर्णत्व ।
२ इसमे हानि वृद्धि रूप उत्पत्ति व विनाश का प्रश्न करने तक
को अवकाश सम्भव नही ।
३ यह त्रिकाली ध्रुव भाव व्यक्त नही होता बल्कि अनुमान के
आधार पर प्रतीति में आ जाता है।