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७. आत्मा व उसके अग
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५ वेदना
इसे विपरीत श्रद्धा, अशुद्ध श्रद्धा, विभाविक श्रद्धा या मिथ्या श्रद्धा कहते है । कदाचित् वीतरागता का रस आ जाने पर यह बदल कर वीरागता मे हित की और राग द्वेष मे अहित की श्रद्धा रूप हो जाये तो, उसे स्वभाविक श्रद्धा शद्ध श्रद्धा या सम्यक श्रद्धा कहते है । यह तो श्रद्धा की प्रगट दीखने वाली व्यक्तिये या पर्याय है । इनके नीचे छिपी हुई वह शक्ति जिसके आधार पर कि यह जागृत होती है और बदलती रहती है उसे श्रद्धा गुण व श्रद्धा शक्ति कहते है ।
__५. वेदना यह जो कुछ जीवन मे चिन्ताओ का भार सा महसूस करने में आता है या सुई चुभने पर यह जो पीडा सी मेहसूस होती है, या कड़वा बादाम मुह मे आने पर कुछ वहुत बुरा बुरा सा लगने लगता है, या मीठाई खाकर कुछ मजा सा आता प्रतीत होता है, उसे वेदना कहते है । यहा वेदना का अर्थ पीड़ा नही है बल्कि वेदन करने की या मेहसूस करने की शक्ति का नाम है । जानने व मेहसूस करने मे कुछ अन्तर है। बालूशाही का मीठास इस जाति का होता है यह तो बालूशाही को जानना है और बालूशाही का मिठास लेते हुए उसमे जो तन्मयता सी हो जाती है, “आ हा हा बहुत स्वाद है" कुछ इस प्रकार का भाव आता है उसे वेदना कहते है । यह दो प्रकार की होती है सुख की व दु.ख की, शान्ति की व अशान्ति की, चिन्ताओं की व निश्न्तिता की, व्याकुलता की व निराकुलता की इच्छाओ की व सन्तोष की इत्यादि । इनमे स सुख शान्ति निराकुलता आदि इस वेदना की स्वाभाविक व • शुद्ध व्यक्तिये है और दुख अशान्ति, व्याकुलता आदि विभाविक व अशुद्ध यक्तिये है । यद्यपि यह भी विचारणाओ रूप ही है पर जानने मात्र से कुछ पृथक प्रकार की है। ये दु ख व सुखादि तो व्यक्तिये व पर्याये है । यह सब जिसमे वास करती है वह वेदना नाम का गुण, त्रिकाली शक्ति है ।