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७. आत्मा व उसके अंग ११७ १. आत्मा सामान्य का
सक्षिप्त परिचय इन्द्रियो के विषय जो रूप, रस, गन्ध, स्पर्श है वे पाये नहीं जाते । इस पदार्थ का अनुभव केवल विचारणाओं रूप से होता है । यह जो पुतला बैठा दिखाई दे रहा है सो दो पदार्थो के सम्मिश्रण से बना हुआ है शरीर व आत्मा । इनदोनो की शक्तिये वर्तमान मे दूध पानी वत् घुलमिल कर इस प्रकार एक मेक हो गई है, कि पता नहीं चलता कौन शक्ति शरीर की है और कौन आत्मा की । सो इन दोनो की शक्तियों को पृथक पृथक पढ़ने का काम तभी सिद्ध हो सकता है जब कि इनको पृथक् पृथक् निकाल कर देखा जाये, और यह सम्भव नही । कदाचित शरीर को पृथक करके देखा जा सके पर आत्मा को तो नही । ___यदि मृत्यु के पश्चात् इस शरीर को पढ़े तो पता चलेगा, कि इस मे कुछ शक्तिये तो अब भी रह गई है और कुछ शक्तिये इसमे से निकल गई है । बस जो शक्तिये निकल गई है वे सर्व ही आत्मा की थी ऐसा जान लेना । वे शक्तिये न इसकी थी और न इसमे रह सकती थी। आत्मा की थी और इसीलिये आत्मा के साथ चली गई, जहां कही भी इस शरीर से पृयक होकर गई है । इस प्रकार पूर्ण शक्तियों मे से उन निकलने वाली शक्तियों का विचार करूँ तो आत्मा की शक्तियो का स्पष्ट परिचय हो जायेगा । अब विचार कर देखिये कि किस चीज का प्रमुखत. अभाव हुआ है । प्रकाश तथा विचारणाओं व चिन्तवनाओं का । और तो यहां सब कुछ पड़ा है । आंख, नाक, कान सब ज् का तू होते हुए भी, उनका प्रकाश जाता रहा । अब वे जान कुछ नहीं पा रही है । अत समझ लीजिये कि यह जो छूकर कुछ अन्दर में महसूस होता था, यह जो चख कर खट्टा मीठा सा महसूस होता था, यह जो सू घ कर कुछ दुर्गन्धी या सुगन्धी का चित्रण अन्दर मे आता था, या जो कुछ देखकर प्रकाश सा या वस्तुओ का स्पष्ट आभास सा देखने में आता था, तथा सुन कर जो कुछ झकार व गुजार सी प्रतीति मे आती थी, वह सब इन इन्द्रियो को नहीं आती थी बल्कि आत्मा को आती थी । यदि