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७. अात्मा व उसके अग
१. आत्मा सामान्य का
सक्षिप्त परिचय कराने के लिये भी। क्योकि आगम मे भी आत्म पदार्थ के सम्बन्ध मे ही प्रमुखत. कथन करने मे आया है, अत. वहा भी आत्मा के अनेको अगो का भिन्न-भिन्न दृष्टियों व नयों से कथन मिलता है। इन दोनो प्रयोजनो की सिद्धि के अर्थ यहा भी आत्म पदार्थ का किन्चित् परिचय करा दिया जाना आवश्यक है। क्योकि ऐसा किये विना आगम के प्रकरणो मे नयों को लागू किया जाना सम्भव न हो सकेगा । दुसरे, आगम मे नयो के उदाहरण भी यदि खोजने जाऊगा तो वहा केवल आत्मा पर लागू करके ही दर्शाये हुए उपलब्ध हो सकेगे, अन्य सामान्य पदार्थो व वस्तुओं पर नही । अत. आत्म पदार्थ के सम्बन्ध मे सक्षिप्त परिचय प्राप्त करना ही इस स्थल पर अत्यन्त आवश्यक है।
वैसे तो आत्म पदार्थ बड़ा विचित्र व जटिल है । एक तो इसलिये कि अनन्तो शक्तियो का पन्ज है, और दूसरे इसलिये कि यह अदृष्ट है । इसका अनुभव या दर्शन आज तक कभी हुआ नही । अतः समझने व समझाने मे वहुत कठिनाइये पड़ेगी । अतः बिना विस्तृत कथन किये, विषय पूर्ण रूपेण स्पष्ट होना असम्भव है। परन्तु यहा यह विषय प्रकृत नहीं है। अतः सक्षिप्त परिचय ही बताया जा सकेगा, सो ध्यान देकर सुनना ।
वस्तु सामान्य वत् आत्मा के भी अनंको अंग है, जिन्हे यहा शक्तियों के रूप में दर्शाया जा रहा है । इनमे से कुछ त्रिकाला शक्तिया है जो गण रूप है, और कुछ क्षणिक या परिवर्तनशील शक्तिया हे जो पर्याय है। त्रिकाली शक्तिये इसमे प्रमुखत. चार हे--ज्ञान, चरित्र, श्रद्धा व वेदना । इन्ही की सामान्य वा विशेष व्याख्या करने मे आती है । शक्तियो का परिचय पाने से पहिले यह वात ध्यान मे बैठा लेनी चाहिये कि आत्मा नाम का पदार्थ इन इन्द्रियो से देखा व जाना नही जा सकता, क्योकि इसमे इन