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________________ ६२ २. द्रव्य व उसके अंगो का परिचय बदलना दो प्रकार से हो सकता है । रस बदल कर रंग बन जाये यह भी बदलना है और खाट्ठा रस बदल कर मीठा रस बन जाये यह भी बदलना है । बस यहां बदलने का अर्थ पहली जाति का बदलना नहीं है बल्कि दूसरी जाति का है। जहां कि अनुभव रूप स्वाद बदल जाने पर भी रस पना नही बदलता । इसे कहते है बदलते हुये भी नही बदलना, नित्य में अनित्यता और फिर विरोध नहीं । अपार है इस अनेकान्त की महिमा | ६. द्रव्य सामान्य यह बदलना ऐसा भी न समझना कि गुण या वस्तु नाम का कोई पंदार्थ तो नीचे निश्चल पड़ा रहे, और पर्याय उसके ऊपर ही ऊपर बदला करे, जैसे कि चक्की का निचला पाट तो निश्चल रहे और उसके उपर उपरला पाट बराबर घूमा करे, बराबर घूमते रहते भी निचले पाट में वह कोई फेर फार न कर सके । सो भाई ! ऐसा नही है । वस्तु, गुण व पर्याय भले ही पृथक पृथक शब्दों के द्वारा कहे जा रहे हो, पर वास्तक मे संत्ताभूत पृथक पृथक पदार्थ नही है, जो एक तो बदल जाये और एक जुका तू बना रहे । वास्तव में यह तीन है ही नही, यह एक ही है फिर भी उसकी शक्तियों का विश्लेबण करने के लिए, इसे तीन भागों में बाट लिया गया है । यह विभाजन काल्पनिक है, वास्तविक या वस्तु भूत नही । और इस लिये पर्याय बदलने पर कथचित गुण व वस्तु ही बदल जाती है। वस्तु व गुण का न बदलना तो केवल उसमे वही जाति व व्यक्तिपने की प्रतीति है । रस बदल कर भी रंस जाति रूप ही रहा, और वस्तु बदल कर वही परमाणु ही रहा दूसरों परमाणु नही बन गया । ऐसी ध्रुवता समझना पर कथन मे भेद आये बिना न रहेगा । आप सर्वत्र उपरोक्त प्रकार उस मे एक रस रूप अर्थ ही ग्रहण करते रहना । ६. उपरोक्त वक्तव्य पर से यह जाना गया कि पर्याय गुण के ही परिवर्तनशील अंग का नाम है, जो प्रत्येक क्षण बदलता रहता
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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