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६. द्रव्य सामान्य ...--- , . ..
११ २. द्रव्य व उसके अगो का परिचयः
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होते तो वस्तु, सरल. (Simple) रहती और ; इसे समझने में भी कठिनता न पड़ती। न, पर्यायो ने इसे जटिल (Complex) बना दिया है, इसलिए समझने में भी दिक्कत पड़ती है, क्योंकि पर्याय बदलने वाले अंगो का नाम है, जिसके कारण-क्ति वस्तु प्रतिक्षण-कुछ बदलती सी प्रतीत होती है । यद्यपि थोड़े समय तक तो उसमे परिवर्तन देखते रहते हुए भी हम उसमें वही पने की प्रतीति को. खोते नही, पर अधिक समय गुजर जाने पर तथा उसका परिवर्वन बहुत-स्थूल हो जाने पर हम उसमें से 'वही पने' की प्रतीति को भूल जाते है,
और उसे कोई नई वस्तु समझने लगते है । जैसे कि अपने--पुत्र को बच्चे से युवा होते तक तो आप, 'यह वही मेरा पुत्र है। इस प्रकार की बात बसबर याद रखते हो, परन्तु-मृत्यु के पश्चात वही प्राणी. जब अन्यत्र- जन्म लेकर आपके सामने आता है तो आप उसे वही. न समझ कर कोई नया ही व्यक्तिः समझने लगते हो। बस यही वहउलझन है जिसे दूर करना अभिष्ट है.। अवस्था बदल जाने से यद्यपि. वस्तु का अनुभवनीय दृष्ट रूप बदल- तो जाता है पर वास्तव मे वस्तु वही की वही रहती है, दूसरी नही, बन जाती। जैसे कि विष्टा बदल कर अन्न बन बैठी, तो भी वस्तु अर्यात वे परमाणु : जिन' पर कि यह दोनों अवस्थाये नृत्य कर रही है, वही के वही रहे । ...
... ५. क्योकि गुणो के पिण्ड का नाम ही वस्तु है, गुणो से पृथक वह कोई स्वतंत्र पदार्थ नहीं इसलिए वस्तु की पर्यायो के परिवर्तन का आधार भी गुणो का-परिवर्तन है। उन सर्व का सामूहिक एक परिवर्तन ही वस्तु का परिवर्तन है, उन सब की सामूहिक-एक पर्याय ही वस्तु की पर्याय है । जैसे कि रग का काला हो जाना, गध का दुर्गधित हो जाना रस का कसायला, हो जाना, और स्पर्श का पिलपिला हो जाना ही आम का सड़ जाना है, इन से अतिरिक्त और कुछ नही पर्याय बदलने पर वास्तव मे गुण ही बदला हुआ प्रतीत होता है । और सर्व गुणो के बदलने पर वस्तु ही बदली हुई प्रतीत होता है । परन्तु