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६. द्रव्य-सामान्य :75
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२ द्रव्य व उसके अंगो का परिचय
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दिया जाता है । उन पर्यायों के अनुभव के अतिरिक्तः वस्तु का पृथक अनुभव नहीं हुआ करता । जैसे कि हरे पने व खट्टे पने आदि के अनुभव के अतिरिक्त आम का पृथका अनुभव नही । और इस प्रकार सामान्यतः कहे जाने वाले हरे, पीले आदि -गुणानही-रंग "गुण की पर्याय है :। खट्टा मीठा आदि रस गुण नही रस गुण पर्याय है। अतः गुण-वह जो सामात्य-रूपासे वस्तु.मे सर्वदा पाया :जावेत सर्वदा शब्द काल सूचक है अर्थात् भूत, भविष्यतः वर वर्तमान तीनों, कालों में पाया जाये । जिसकी वस्तु-में न कभी नचीन उत्पत्ति हुई हो और न कभी विनाश हो सकता हो । इसीलिये वस्तु का त्रिकाली, याः ध्रुव अग स्वीकारा गया है। इसलिये वस्तु मे जितने गुण है उतने ही सदा बने रहते है। ऐसा नही होता कि आज उसमें ३ गुण है और कल को चार हो जाये और परसों को दो ही रह जाये। क्योंकि गुणो के निकले विना उनकी संख्या में हानि, और गुणों के प्रवेश बिना उनकी संख्या मे वृद्धि होनी असंभव है। : '.
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गुण वस्तु मे सर्वत्र व्याप कर-रहते है । सर्वत्र शब्द क्षेत्र सूचक है अर्थात् वस्तु के एक एक कण मे प्रत्येक गुण मानों - - ओतप्रोत होकर समाया रहता है । ऐसा नहीं होता कि एक कोने मे, तो रस. नाम का गुण बैठा हो और दूसरे कोने मे रंग नाम का गुण। वस्तु, को तोड़ कर उसका छोटे से छोटा हिस्सा भी यदि पृथक निकाल कर.. देखे तो वहा सारे ही वस्तु के गुण दिखाई देगे । अर्थात जहां. जहा वस्तु है वहा वहा उसका प्रत्येक गुण है। जहां जहा एक गुण है- वहा वहा दूसरे आदि अनेक गुण है । जैसे आम मे जहां रग है वहा ही कोई न कोई स्वाद भी है, और वहा ही कोई न कोई गन्ध भी है इत्यादि । इनको सकोड़ कर सकुचित किया जाना भी सभव नही है।
४ यहां तक तो वस्तु को गुणो के समुदाय रूप से देखा और अब इसे पर्यायो के समुदायरूप से देखो। यदि केवल गुण · ही गुण हुये