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५. सम्यक और मिथ्या ज्ञान
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११. कुछ लक्षण
प्रत्यक्षः १. अध्यात्म विज्ञान के प्रकरण मे निज चैतन्य तत्वसंबंधी
प्रत्यक्ष, अर्थात् शाति रस के अनुभव हो जाने पर, होने वाला कोई भी इन्द्रिय प्रत्यक्ष ज्ञान, या अवधि मनः पर्यय
आदिप्रत्यक्ष ज्ञान, सम्यक् प्रत्यक्ष ज्ञान कहलाता है । परोक्षज्ञान या ज्ञान . . १. उपरोक्त आत्मानुभव के रहते जिस किसी भी विषय का '
प्रमाण ज्ञान सम्यक्-ज्ञान है।
मिथ्या लक्षण: '३. मिथ्या प्रमाण अनेको अशो के पृथक पृथक रूप से खंडित ग्रहण
होने के कारण मिथ्या अनेकान्त है। १. प्रमाण ज्ञान या अनुभव ज्ञान से शून्य उससे निरपेक्ष पृथक पृथक
अगों का ज्ञान मिथ्यानय ज्ञान है। २. उपरोक्त मिथ्या नय ज्ञान के आधार पर बोले गए या लिख
गए शब्द भी मिथ्या नय वाक्य है । ३. पृथक पृथक अंगो का स्वतंत्र रूप खंडित ग्रहण होने के कारण
यह मिथ्या एकांत है। १. भले, ही अन्य पदाथों का प्रत्यक्ष ज्ञान हो जाने पर अध्यात्म
प्रकरण मे आत्म शाति के अनुभव रहित वर्तनेवाला
इन्द्रिय प्रत्यक्ष व अवधि प्रत्यक्ष मिथ्या प्रत्यक्ष ज्ञान है। " २. उपरोक्त आत्मानुभव के अभाव मे अन्य विषयों का स्पष्ट
प्रमाण, ज्ञान रूप चित्रण भी मिथ्या ज्ञान है ।